________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 卐१-१-3-४ (२२)卐 173 V टीका-अनुवाद : यहां लोक शब्दसे अप्काय-लोक समझीयेगा... अपकाय-जीवोंको और अन्य पदार्थोको जिनेश्वरोंके वचनोंसे अच्छी तरहसे समझीएगा... जैसे कि- अप्काय आदि जीव हैं... ऐसा समझनेके बाद अकुतोभय याने संयमका पालन करें... जिससे किसीको भी भय डर न हो वह अकुतोभय = संयम... अथवा तो अप्काय-लोक मरणसे डरतें हैं अतः वे मरणको कभी भी नहिं चाहतें अतः प्रभु आज्ञासे अकुतोभय याने संयमका पालन करें, अपकायकी रक्षा करें... अप्काय-जीवोंको प्रभु-आज्ञासे जान कर, जो करना चाहिये, वह बात अब सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्र में कहेंगे... VI सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में यह स्पष्ट कर दिया है कि वीतराग की वाणी पर पूर्ण विश्वास रखकर तदनुसार ही आचरण करना चाहिए / क्योंकि जब तक साधक छद्मस्थ है, तब तक उस के ज्ञान में अपूर्णता होने के कारण वह वस्तु के स्वरूप को भली-भांति नहीं भी देख पाता / कई बातों के लिए उसके मन में संदेह उठना स्वभाविक है / परन्तु वीतराग के वचनों में संशय करने को अवकाश ही नहीं है / क्योंकि वे सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी होने से प्रत्येक द्रव्य के कालिक स्वरूप को जानते-देखते हैं / इसलिए उन के वचनों के आधार पर साधक प्रत्येक वस्तु के स्वरूप को सम्यक्तया जान सकता है और उनके वचनानुसार गति करके एक दिन सिद्धत्व को पा सकता है / यही बात प्रस्तुत सूत्र में बताई है / प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त 'लोक' शब्द का विषय के अनुरूप अप्काय लोक अर्थ होता है / और 'अकुओ भयं' संयम का परिबोधक है, और अप्काय का विशेषण भी है / संयम अर्थ में इसकी परिभाषा इस प्रकार है- “न विद्यते कुतश्चिद् हेतोः केनापि प्रकारेण जन्तूनां भयं यस्मात् सोऽयं अकुतो भयः संयम: तमनुपालयेदिति सम्बन्धः / " अर्थात्-जिस साधना या क्रिया से जीवों को किसी भी प्रकार का या किसी भी प्रकार से भय न हो, उसे 'अकुतो भयः' कहते हैं; और वह साधना का प्राणभूत संयम ही है / जब उक्त शब्द का अप्काय के विशेषण के रूप में प्रयोग करते हैं, तो उसकी व्युत्पति इस प्रकार बनेगी- 'अकुतो भयः अप्कायलोकः यतोऽसौ न कुतश्चिद् भयमिच्छति मरणभीरूत्वात्।" अर्थात-मरणमीरू होने के कारण अप्काय के जीव किसी से भी भयभीत होने के इच्छुक नहीं हैं अतः इसे 'अकुतो भयः' कहते हैं / 'अभिसमेच्चा-अभिसमेत्य' शब्द अभि+सम्+इ+त्वा (य) के संयोग से बना है / अभि का अर्थ है-सभी प्रकार से, सम् का अभिप्राय है-अच्छी तरह से, सम्यक् प्रकार से और 'इ'