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________________ 156 1-1 - 2 - 5 (18) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन %3 III शब्दार्थ : एत्थ-पृथ्वीकाय में / सत्थं-शस्त्र से जो / असमारंभमाणस्स-समारम्भ नहीं करते उन को / इच्चेते-ये खनन, कृषी आदि / आरम्भ-आरम्भ-समारम्भ; परिणाता-परिज्ञात होते हैं / तं परिणाय-उस पृथ्वीकाय के समारम्भ को कर्म बन्ध का कारण जानकर। मेहावीप्रबुद्ध पुरुष-बुद्धिमान / नैव-न तो / सयं-स्वयं ही / पुढ़विसत्थं समारम्भेजा-पृथ्वीकाय का शस्त्र से आरम्भ-समारम्भ करे / णेवण्णेहि-न दूसरे व्यक्तियों से / पुढविसत्थं समारंभावेज्जापृथ्वीकाय का शस्त्र द्वारा आरम्भ करावे / णेवण्णे-न अन्य का जो / पढविसत्थं समारंभतेपृथ्वीकाय का शस्त्र से आरम्भ कर रहा हो / समणुजाणेज्जा-अनुमोदन-समर्थन करे। जस्सेतेजिसको ये / पुढविकायसमारंभा-पृथ्वीकायिक जीवों के हिंसाजनक व्यापार / परिणायापरिज्ञात / भवंति-होते हैं / से हु-वही / मुणी-मुनि / परिणाय कम्मा-परिज्ञात कर्मा होता है। तिबेमि-इस प्रकार मैं कहता हूं / IV सूत्रार्थ : पृथ्वीकाय जीवोंमें शस्त्रका समारंभ जो नहिं करते उन्होंने यह सभी आरंभ-समारंभ परिज्ञात कीये है... इन आरंभ-समारंभोंको जानकरके मेधावी साधु स्वयं पृथ्वीकायशस्त्रको आरंभे नहिं. अन्योंके द्वारा पृथ्वीशस्त्रको आरंभावे नहिं, और जो लोग स्वयं हि पृथ्वीकाय शस्त्रका आरंभ करते हैं उनकी अनुमोदना न करें, जिन्होंने यह पृथ्वी कर्मसमारंभ परिज्ञात कीये है, वे हि परिज्ञात कर्मा मुनी है ऐसा मैं कहता // 18 // v टीका-अनुवाद : . यहां पृथ्वीकायके विषयमें शस्त्र दो प्रकारसे है... 1. द्रव्यशस्त्र 2. भावशस्त्र... 1. द्रव्यशस्त्रके तीन प्रकार है... (1) स्वकाय द्रव्यंशस्त्र (2) परकाय द्रव्य शस्त्र (3) उभयकाय द्रव्यशस्त्र... 2. भावशस्त्र- दुष्ट मन, दुष्ट वचन एवं दुष्ट कायाके व्यापार (प्रयोग) स्वरूप असंयम... इन दोनों प्रकारके शस्त्रसे पृथ्वीकायको खोदना, खेती करना इत्यादि आरंभ-समारंभसे अज्ञानी जीव, कर्मबंध होता है ऐसा नहिं जानता... और इनसे विपरीत याने पृथ्वीकायकी हिंसासे कर्मबंध होता है ऐसा जो जानता है वह परिज्ञात मुनि है... पृथ्वीकाय जीवोंमें उपर कहे गये दोनों प्रकारके द्रव्य एवं भाव शस्त्रका प्रयोग नहिं करनेवाले मुनि पूर्व कहे गये कर्मबंधको जानता है, ऐसा सूत्रका सार है... ऐसा कहनेसे यहां
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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