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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 1 - 1 - 9 111 इसके अतिरिक्त योनि के और भी अनेक भेद मिलते हैं / उनकी संख्या 84 लाख बताई गई है / वह इस प्रकार है पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजस्काय और वायुकाय इन में से प्रत्येक काय की सात-सात लाख योनियां होती है / प्रत्येक वनस्पति काय की 10 लाख योनियां है, साधारण वनस्पति (अनन्त काय) की 14 लाख, विकलेन्द्रिय (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय) में से प्रत्येक की दो-दो लाख, नारक, देव और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च की चार-चार लाख और मनुष्य की 14 लाख योनियां होती हैं / इस प्रकार संसार के समस्त जीवों की 7 + 7 + 7 + 7 + 10 + 14 +2+2+2+4 + 4 + 4 + 24 = 84 लाख योनियां होती है / इन सभी योनियों में संसारी जीव जन्म-मरण करते हैं और जन्म-मरण के प्रवाह में प्रवहमान रहने के कारण ही जीवों को मानसिक, वाचिक और कायिक संक्लेश एवं दुःखों का संवेदन एवं सामना करना पड़ता है / "विरूवरूवे फासे पडिसंवेदेह" प्रस्तुत वाक्य में व्यवहृत 'विरूपरूप' 'स्पर्श' शब्द का विशेषणं है / 'विरूपरूप' शब्द 'विरूप+रूप' इन दो शब्दों के संयोग से बना है / विरूप बीभत्स और अमनोज्ञ को कहते हैं और रूप शब्द से स्वरूप का बोध होता है / अतः 'विरूपरूप' शब्द का अर्थ हुआ- बीभत्स और अमनोज्ञ स्वरूप वाला / 'स्पर्श' शब्द स्पर्शनेन्द्रिय आश्रित दुःखों का परिबोधक है स्पर्श को उपलक्ष्य मान लेने पर वह स्पर्श शारीरिक एवं मानसिक दोनों दुःखों का परिचायक बन जाता है / यहां यह प्रश्न पुछा जा सकता है, कि- सूत्रकार ने “फासे" शब्द का उल्लेख करके केवल स्पर्शनेन्द्रिय आश्रित दुःखों की और संकेत किया है, किन्तु हम यह देखते हैं किघ्राण, रसना आदि अन्य इन्द्रियों के आश्रित दुःखों का भी संवेदन होता है, पर सूत्रकार ने उन का उल्लेख नहीं किया, इसका क्या कारण है ? उक्त प्रश्न का उत्तर यह है कि- स्पर्श इन्द्रिय आश्रित दुःख का उल्लेख करके सूत्रकार ने अन्य इन्द्रियों द्वारा संवेदित दुःखों को स्पर्श इन्द्रिय द्वारा संवेदित दुःखों में ही समाविष्ट कर दिया है / अन्य इन्द्रियों के नाम का उल्लेख न करके स्पर्शनेन्द्रिय का उल्लेख करने का यह कारण रहा है कि- स्पर्श इन्द्रिय संसार के सभी प्राणियों को होती है / अन्य इन्द्रियें कुछ ही प्राणिओं को होती हैं / जैसे-नारक तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय, मनुष्य और देवों को श्रोत्र इन्द्रिय, चक्षु इन्द्रिय, घ्राण इन्द्रिय, रसना इन्द्रिय और स्पर्श इन्द्रिय होती है / परन्तु, चतुरिन्द्रिय जीवों को श्रोत्र इन्द्रिय नहीं होती, त्रीन्द्रिय जीवों को श्रोत्र और चक्षु इन्द्रिय नहीं होती, द्वीन्द्रिय जीवों को श्रोत्र, चक्षु और घ्राण इन्द्रिय नहीं होती, और एकेन्द्रिय जीवों को केवल स्पर्श इन्द्रिय ही होती है / अन्य इन्द्रियें नहीं होती / इससे स्पष्ट हो गया कि- अन्य इन्द्रियें कई जीवों में
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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