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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी-टीका # 1-1-1-6 // कर्म बन्धन से आबद्ध आत्मा ही संसार में परिभ्रमण करती है / और कर्म का कारण क्रिया है अर्थात् क्रिया से कर्म का प्रवाह प्रवहमान रहता है / अतः अब सूत्रकार महर्षि स्वयं, क्रिया के संबन्ध में विशेष बात आगे के सूत्र से कहेगें... I सूत्र // 6 // - अकरिस्सं चऽहं, कारवेसुं चऽहं, करओ आवि समणुण्णे भविस्सामि || 6 || II संस्कृत-छाया : अकार्षं चाऽहं, कारयामि चाऽहं, कुर्वतश्चापि समनुज्ञो भविष्यामि // 6 // III शब्दार्थ : अकरिस्सं चऽहं - मैं ने किया / कारवेसु चऽहं - मैं कराता हूं / करओ आवि समणुन्ने भविस्सामि - करने वाले व्यक्तियों का मैं अनुमोदन-समर्थन करुंगा / IV सूत्रार्थ : मैंने कीया है, मैंने करवाया है, और करनेवाले अन्यका अनुमोदक होउंगा // 6 // V टीका-अनुवाद : यहां भूतकाल, वर्तमानकाल एवं भविष्यकाल की अपेक्षासे करना, करवाना, एवं अनुमतिके द्वारा नव (9) विकल्प हुए... वे इस प्रकार भूतकालके तीन भेद... 3. ___-si मैंने कीया मैंने करवाया स्वयं करते हुए अन्यके कार्यमें संमति दी... वर्तमान कालके तीन भेद... मैं करता हुं मैं करवाता हुं स्वयं करते हुए अन्यको संमति देता हूं..... भविष्यत्कालके तीन भेद... मैं करूंगा मैं करवाउंगा स्वयं करते हुए अन्यको संमति दूंगा...
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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