________________ // 1-1 - 1 -५卐 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन विकास का प्रशस्त पथ दिखाने के लिए 'सोऽहं' का चिन्तन एवं ध्यान उज्जवल प्रकाश स्तम्भ है / जिसके ज्योतिर्मय आलोक में साधक आत्म विकास के पथ में साधक एवं बाधक तथा हेय एवं उपादेय सभी पदार्थो को भली-भांति जान लेता है और हेय-उपादेय के परिज्ञान के अनुसार हेय पदार्थों से निवृत्त होकर, उपादेय स्वरूप साधना में, संयम में प्रवृत्त होता है, संयम में सहायक पदार्थों एवं क्रियाओं को स्वीकार करके सदा आगे बढ़ता है / इस प्रकार यथायोग्य विधि से 'सोऽहं' की विशिष्ट भावना का चिन्तन करता हुआ साधक निरन्तर आगे बढ़ता है, ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम करता चलता है और एक दिन जाति-स्मरण ज्ञान, अवधि ज्ञान या मनः पर्यवज्ञान को प्राप्त कर लेता है तथा ज्ञानावरणीय कर्म का समूलतः क्षय करके अपनी आत्मा में स्थित अनन्त ज्ञान-केवल ज्ञान को प्रकट कर लेता है / जाति स्मरण ज्ञान से पूर्व भव में निरन्तर किए गए संख्यात भवों को, अवधि एवं मनःपर्यव ज्ञान से संख्यात और असंख्यात भवों को तथा केवल ज्ञान से अनन्त-अनन्त भवों को देख-जान लेता है / प्रस्तुत सूत्र में ज्ञान प्राप्ति के तीन कारणों का निर्देश किया गया है - १-सन्मति या स्वमति, २-पर-व्याकरण और 3-परेतर-उपदेश / उक्त साधनों से मनुष्य अपने पूर्वभव की स्थिति को भली-भांति जान लेता है और उसे यह भी बोध हो जाता है कि इन योनियों में एवं दिशा-विदिशाओं में भ्रमणशील मैं आत्मा ही हूं / इससे उसकी साधना में दृढता आती है, चिन्तन, मनन में विशुद्धता आती है / उपर्युक्त त्रिविध साधनों से जो जीव-आत्मा अपने स्वरूप को समझ लेता है, वह आत्मवादी कहा गया है / जो आत्मवादी है, वही लोकवादी है और जो लोकवादी होता है वही कर्म-वादी कहा जाता है / और जो कर्म-वादी है वही क्रिया-वादी कहलाता है / आगे के सूत्र में इन्हीं भावों का विवेचन, सूत्रकार महर्षि कहेंगे... I सूत्र // 5 // से आयावादी लोयावादी कम्मावादी किरियावादी... // 5 // II संस्कृत-छाया : स आत्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी, क्रियावादी // 5 // III शब्दार्थ : से-वह अर्थात् आत्मा के उक्त स्वरूप को जानने वाला / आयावादी-आत्मवादी, आस्तिक है, वही लोयावादी-लोकवादी है, वही कम्मावादी-कर्मवादी है, वही किरियावादीक्रियावादी है /