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________________ 84 // 1-1-1 - 4 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन होता ही है / यदि वह ज्ञान पर पदार्थ से ही उत्पन्न होता है, तो फिर घट के अभाव में घट का ज्ञान नहीं होना चाहिए / और विशिष्ट साधकों को विशिष्ट ज्ञान से अप्रत्यक्ष में स्थित पदार्थों का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है, वह भी नहीं होना चाहिए। विशिष्ट ऋषि-महर्षियों को योगि-प्रत्यक्ष ज्ञान वैशेषिक दर्शन के विचारकों ने भी माना है कि- जो उनके विचारानुसार गलत ठहरेगा। परंतु ज्ञान तो होता है और वैशेषिक स्वयं मानते भी है, अतः आत्मा से ज्ञान को सर्वथा पृथक् एवं उसमें समवाय संबंध को मानना युक्ति संगत नहीं है, अतः ज्ञान आत्मा में तादात्म्य संबंध से सदा विद्यमान रहता है, इसी बात को 'सह' शब्द से अभिव्यक्त किया है / २-पर-व्याकरण ज्ञान प्राप्ति का दूसरा कारण पर-व्याकरण है / प्रस्तुत में 'पर' शब्द तीर्थंकर भगवान का बोधक है तथा 'व्याकरण' शब्द का अर्थ उपदेश है / अतः कितनेक जीवों को ज्ञान की प्राप्ति में तीर्थकर भगवान का उपदेश निमित्त कारण बनता है, इसलिए ऐसे ज्ञान की प्राप्ति में 'पर-व्याकरण' यह कारण माना गया है / वस्तुतः ज्ञान की प्राप्ति का मूल कारण ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम भाव ही है / फिर भी उस क्षयोपशम भाव की प्राप्त में जो सहायक सामग्री अपेक्षित होती है या जिस साधन के सहयोग से जीव ज्ञानवरणीय कर्म का क्षयोपशम करता है, उस साधन को भी ज्ञान प्राप्ति का कारण मान लिया जाता है / ‘परव्याकरण' ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम में सहायक होता है, तीर्थंकरों का उपदेश सुनकर अपने स्वरूप को समझने की भावना प्रगट होती है, चिंतन में गहराई आती है, इससे अज्ञान का आवरण हटता है, आत्मा में ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित होती है और आत्मा ज्ञानके उज्जवल प्रकाश में अपने स्वरूप का प्रत्यक्षीकरण करती है, अतः ‘पर व्याकरण' को ज्ञान प्राप्ति का कारण माना गया है / ___'पर व्याकरण' ज्ञान प्राप्ति का बहिरंग साधन माना जाता है / तीर्थंकर भगवान के उपदेश के सहयोग से जीव अपनी पूर्व भव सम्बंधी बातों को जान लेता है और यह भी जान लेता है कि मैं पर्व-पश्चिम आदि किस दिशा-विदिशा से आया हूं, इत्यादि / पर व्याकरण-तीर्थंकर भगवान के उपदेश से ज्ञान प्राप्त करके साधनापथ पर गतिशील हुए व्यक्तियों के संबंध में आगमों में अनेक उदाहरण उपलब्ध होते हैं / ज्ञाता धर्मकथांग में श्री मेघ कुमार मुनि का वर्णन आता है / मेघ कुमार मुनि दीक्षा की प्रथम रात्रि को ही मुनियों के बार-बार ठोकरें लगने से आकुल-व्याकुल हो उठे और उस रात्रि में प्राप्त वेदना से घबराकर उन्होंने यह निर्णय भी कर लिया कि मैं प्रातः संयम का परित्याग करके अपने राज भवन में पुनः लौट जाऊंगा। सूर्योदय होते ही मुनि मेघ कुमार संयम साधना में सहायक भण्डोपकरण वापस लौटाने के लिए भगवान महावीर के चरणों में पहुंचे / सर्वज्ञ-सर्वदर्शी प्रभुजी ने मेघ मुनि के हृदय में मच रही उथल-पुथल को जान रहे थे, अतः उन्होंने, मेघमुनि कुछ कहे उसके
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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