________________ श्री सजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-1-1-4 // मन की सहायता नहीं लेनी पडती, इसी कारण इन विशिष्ट ज्ञानों को प्रत्यक्ष या आत्म-ज्ञान कहते हैं / प्रस्तुत ज्ञान से ही आत्मा को अपने स्वरूप का एवं मैं किस गति एवं दिशाविदिशा से आया हं, इत्यादि बातों का बोध होता है / 'सह संमइयाए' इस वाक्य में व्यवहृत 'सह' शब्द संबंध का बोधक है / इस शब्द से आत्मा और ज्ञान का तादात्म्य संबंध अभिव्यक्त किया गया है / ऐसे प्रायः सभी दार्शनिक आत्मा में ज्ञान का अस्तित्व स्वीकार करते हैं, परन्तु उसका आत्मा के साथ क्या सम्बन्ध है, इस मान्यता में सभी दार्शनिकों में एकमत नहीं है / वैशेषिक दर्शन-ज्ञान को आत्मा से सर्वथा पृथक् मानता है / वह कहता है कि 'आत्मा आधार है और ज्ञान आधेय है / ' ज्ञान गुण और आत्मा गुणी है / अतः वह आत्मा में समवाय संबंध से रहता है / क्योंकि ज्ञान पर पदार्थ से उत्पन्न होता है / जैसे-घट के सामने आने पर हि आत्मा का घट से सम्बंध होता है, तब आत्मा को घट का ज्ञान होता है और घट के हटते ही ज्ञान भी चला जाता है / इस तरह ज्ञान पर पदार्थ से उत्पन्न होता है और समवाय संबंध से आत्मा के साथ सम्बन्धित होता है / इस तरह वैशेषिक दर्शन ज्ञान को आत्मा से पथक मानता है अर्थात पर पदार्थ से उत्पन्न होनेवाला है ऐसा स्वीकार करता है / परन्तु जैन दर्शन ज्ञान को आत्मा का गुण मानता है / और उसे आत्मा का अभिन्न स्वभाव या धर्म मानता है और यह भी स्वीकार करता है कि प्रत्येक आत्मा में अनंत ज्ञान अस्तित्व-सत्ता रूप से सदा विद्यमान रहता है / यद्यपि अनेक जीवों में ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से उसकी अनंत ज्ञान की शक्ति प्रच्छन्न रहती है, यह बात अलग है / भले ही आत्मा की ज्ञान शक्ति पर कितना भी गहरा आवरण क्यों न आ जाए, फिर भी वह ज्ञान सर्वथा प्रच्छन्न नहीं हो सकता, अनंत-अनंत काल के प्रवाह में कोई एक भी समय ऐसा नहीं आता कि आत्मा का ज्ञान दीप सर्वथा बुझ गया हो या बुझ जायगा / वह सदा-सर्वदा प्रज्वलित रहता है, काश मंद, मंदतर और मंदतम हो सकता है, पर सर्वथा बुझ नहीं सकता। उसका अस्तित्व आत्मा में सदा बना रहता है / वह ज्ञानगुण आत्मा में समवाय संबंध से नहीं, बल्कि तादात्म्य संबंध से है। समवाय सम्बंध से स्थित ज्ञान समवाय सम्बन्ध के हटते ही नाश को प्राप्त हो जाएगा / परंतु ऐसा होता नहीं है और वस्तुतः देखा जाए तो ज्ञान का आत्मा के साथ समवाय संबंध हो भी नहीं सकता / क्योंकि ज्ञान, पर स्वरूप नहीं, किंतु स्व स्वरूप है / पर पदार्थ से ज्ञान की उत्पत्ति मानना अनुभव एवं प्रत्यक्षादि प्रमाणों से विरुद्ध है / यदि ज्ञान पर पदार्थ से ही पैदा होता है, तो फिर पर पदार्थ के हट जाने / " या सामने न होने पर उक्त पदार्थ का ज्ञान नहीं होना चाहिए / परंतु, ज्ञान होता तो है / घट के हटा लेने पर भी घट का बोध होता है / घट के साथ-साथ घट ज्ञान आत्मा में से नष्ट नहीं होता, किंतु उस की अनुभूति होती है / कई बार घट सामने नहीं रहता, फिर भी घट का ज्ञान तो