________________ 72 // 1 - 1 - 1 - 3 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन बहुमान... (2) वचनसे अच्छी बात... स्वागत वचन... (3) कायासे सेवा - सत्कार... और (4) आहार - पानी - वस्त्र आदिका दान... अतः 8 x 4 = 32 प्रकार विनयके हुए... वह इस प्रकार... देव का मनसे, वचनसे, कायासे एवं देश-कालसे उचित दान... इस प्रकार शेष सातोंमें चार प्रकारका विनय... यह विनयवादी लोग ऐसा मानते हैं कि- विनयसे हि जीव स्वर्ग एवं अपवर्ग (मोक्ष) के मार्गको प्राप्त करता है... विनय याने नम बनना और अपना उत्कर्ष न करना... इस प्रकारका विनय देव आदि आठोंके प्रति करनेसे जीव स्वर्ग एवं मोक्ष पद पाता है... कहा भी है कि- विनयसे ज्ञान, ज्ञानसे दर्शन, और सम्यग् दर्शनसे चारित्र... तथा चारित्रसे मोक्ष और मोक्षमें अव्याबाध सुख है... यहां क्रियावादीओंके मतमें जीव का अस्तित्व तो माना है किंतु उनमें से कितनेक लोग जीवको सर्वव्यापी मानते है, तो कितनेक लोग जीवको नित्य मानते हैं... इसी प्रकार अनित्य, कर्ता, अकर्ता, मूर्त, अमूर्त, श्यामाकतंदुलप्रमाण, अंगुष्ठपर्वप्रमाण, दीपककी शिखा समान, हृदयाधिष्ठित इत्यादि अनेक प्रकारसे जीवको विभिन्न क्रियावादीओं स्वीकारते हैं और अस्ति याने जीव कहींसे आकर उत्पन्न होता है... ऐसा वे क्रियावादी लोग मानते हैं... अक्रियावादीओंके मतमें तो आत्मा का अस्तित्व हि माना नहिं है... तो फिर उस आत्माका उत्पन्न होना हि कैसे संभव होगा ?. अज्ञानवादी लोग आत्माके अस्तित्वके बाबतमें विरोध नहिं करते किंतु आत्मामें जो ज्ञान है वह कोड कामका नहिं है, अर्थात् निरर्थक है... विनयवादीओंके मतमें भी आत्माके अस्तित्वमें कोई विरोध नहिं है, किंतु आत्माका मोक्ष विनयके बिना हो हि नहिं शकता ऐसी उनकी मान्यता है... इस प्रकार यह 383 पाखंडीओंमें से केवल अक्रियावदीओंके 84 मतवाले हि आत्माका अस्तित्व नहिं मानते हैं... शेष 279 मतभेदवाले लोग सामान्यसे आत्माकी अस्तित्वको स्वीकारतें हि हैं... इस प्रकार सामान्यसे आत्माका अस्तित्वका प्रतिपादन होनेसे अक्रियावादीओंका निराश हो गया... आत्माके अस्तित्वका स्वीकार न करने में जो दोष हैं, वह क्रमशः कहते है... जैसे किशासक, शास्त्र, शिष्य, प्रयोजन, वचन (उपदेश) हेतु और दृष्टांत नहि रहेंगे... उनके अभावमें