________________ 50 // 1-1 - 1 - 2 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन दिसाओ वा-या अधो दिशा से / अण्णयरीओ वा दिसाओ या किसी भी एक दिशा से / अणुदिसाओ वा-या अनुदिशा-विदिशा से / आगओ अहमंसि-मैं आया हूं / एवमेगेसिं-इस प्रकार इन्हीं जीवोंको / णो णायं भवइ-यह ज्ञान नहीं होता / IV सूत्रार्थ : वह इस प्रकार - मैं पूर्व दिशासे आया हुं, दक्षिण दिशासे आया हुं, पश्चिम दिशासे आया हुं, उत्तर दिशासे आया हुं, उर्ध्व दिशासे आया हुं, अधः = नीचेकी दिशासे आया हुं, अन्य और कोइ भी दिशा या अनुदिशा से आया हुं... यह इस प्रकारका ज्ञान कितनेक जीवोंको नहिं होता है... // 2 // V टीका-अनुवाद : दिशति इति दिक् = द्रव्य या द्रव्यभागको जो दिखलावे वह दिशा / अब नियुक्तिकार / दिशा के निक्षेपे कहते हैं.... नि. 40 1. नाम दिशा ताप दिशा स्थापना दिशा प्रज्ञापक दिशा द्रव्य दिशा 7. भाव दिशा... क्षेत्र दिशा इस प्रकार दिशा के सात प्रकार है... नाम दिशा = सचित आदि वस्तुका दिशा ऐसा नाम... स्थापना दिशा = चित्रमें आलेखित जंबूद्वीप आदिके क्षेत्रादिमें दिशांओके विभागकी स्थापना वह स्थापना दिशा... द्रव्य दिशा दो प्रकार से है... 1. आगम से 2. नो आगम से... आगम से द्रव्य दिशा = ज्ञाता किंतु अनुपयुक्त... नो आगम से द्रव्य दिशा के तीन प्रकार है... 1. ज्ञ शरीर 2. भव्य शरीर 3. तद्व्यतिरिक्त... तद्व्यतिरिक्त नो आगम द्रव्य दिशा = तेरह (13) प्रदेशवाले द्रव्यके माध्यमसे हि यह द्रव्य दिशा जानी जाएगी...