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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-1-1-2 // 49 केवलज्ञान-मति आदि चारों ज्ञानों की अपेक्षा के बिना तीनों लोक में स्थित द्रव्यों एवं त्रिकाल वर्ती भावों को युगपत् हस्तामलकवत् जानना-देखना / इस तरह ‘संज्ञा' शब्द से अनुभूति और ज्ञान दोनों का निरूपण किया गया है / अनुभूति रूप संज्ञा या चेतना तो संसार के सभी जीवों में रहती है / अतः यहां उक्त संज्ञा का निषेध नहीं किया गया है / ज्ञान रूपी संज्ञा में भी संसार के समस्त छद्मस्थ जीवों में सम्यक या असम्यक् किसी न किसी रूप में मतिज्ञान एवं श्रुतज्ञान या अज्ञान रहता ही है / अतः ‘णो सण्णा भवइ' वाक्य से प्रस्तुत सूत्र में जो ज्ञान का निषेध किया है, वह साधारण रूप से होने वाले ज्ञान का नहीं, परन्तु विशिष्ट रूप से पाए जाने वाले ज्ञान का निषेध किया है-जिससे आत्मा यह जान-समज सके कि मैं किस दिशा-विदिशा से आया हूं ? ऐसा विशिष्ट ज्ञान संसार के सभी जीवों को नहीं होता / इस लिये 'णो' पद से यह अभिव्यक्त किया गया है कि संसार के कुछ एक जीवों को विशिष्ट ज्ञान नहीं होता / उस विशिष्ट ज्ञान का क्या स्वरूप है ? इसका समाधान एवं स्पष्ट विवेचन सुत्रकार के शब्दों में आगे के सूत्र में पढ़ीएगा I सूत्र // 2 // तं जहा - पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दाहिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पचत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अहोदिसाओ वा आगओ अहमंसि, अण्णायरीओ वा दिसाओ अणुदिसाओ वा आगओ अहमंसि, एवमेगेसिं नो नायं भवति // 2 // II संस्कृत-छाया : तद्-यथा पूर्वस्या वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, दक्षिणास्या वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, पश्चिमाया वा दिशाया आगतोऽहमरिम, उत्तरस्या वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, ऊर्वाया वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, अधोदिशाया वा आगतोऽहमस्मि, अन्यतरस्या वा दिशाया, अनुदिशाया वा आगतोऽहमस्मि, एवं एकेषां नो ज्ञातं भवति // 2 // III शब्दार्थ : तंजहा-जैसे / पुरत्थिमाओ वा दिसाओ-पूर्व दिशा से / आगओ अहमंसि-मैं आया हूं। दाहिणाओ वा दिसाओ=अथवा दक्षिण दिशा से / पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ-या पश्चिम दिशा से / उत्तराओ वा दिसाओ-या उत्तर दिशा से / उड्ढाओ वा दिसाओ-या ऊर्ध्व दिशा से / अहो __
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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