________________ मीमांसक मत - प्रमाण - अर्थात् ‘नहीं जाने गये अनधिगत पदार्थ को जाननेवाला ज्ञान प्रमाण है।' अनधिगत - नहीं जाने गये खम्भा आदि बाह्य पदार्थों को संशय आदि का निराकरण कर अधिकता से विशेषता के साथ जानने वाला ज्ञान प्रमाण है। जैमिनि मत में छ: प्रमाण स्वीकारे गये है। वे इस प्रकार है - प्रत्यक्षमनुमानं च शाब्दं चोपमया सह। अर्थापत्तिरभावश्च षट् प्रमाणानि जैमिने // 42 जैमिनि मुनि ने प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, अर्थापत्ति और अभाव इन छह प्रमाणों को माना है। प्रभाकर मिश्र अभाव को प्रत्यक्ष के द्वारा ग्राह्य मानकर अर्थापत्ति पर्यन्त पाँच ही प्रमाण स्वीकार करते है। भट्ट . अभाव को भी प्रमाण मानते है। इनके मत में छह ही प्रमाण है। प्रत्यक्ष - विद्यमान पदार्थों से इन्द्रियों का सन्निकर्ष होने पर आत्मा को जो बुद्धि उत्पन्न होती है उसे प्रत्यक्ष कहते है। ___ जैमिनि मत में श्लोक में छन्द रचना के अनुरोध से प्रत्यक्ष के लक्षण शब्दों को बेसिलसिले निर्देश किया. है पर वस्तुतः उनका क्रम इस प्रकार है ‘सतां संप्रयोगे सति आत्मानोऽक्षाणां बुद्धि जन्म प्रत्यक्षम्।' विद्यमान वस्तुओं के सम्बन्ध होने पर आत्मा को इन्द्रियों के द्वारा जो बुद्धि उत्पन्न होती है वह प्रत्यक्ष है। जैमिनि का प्रत्यक्ष सूत्र यह है - ‘सत्संप्रयोगे सति पुरुषस्येन्द्रियाणां बुद्धि जन्म तत्प्रत्यक्षम्' विद्यमान वस्तु से इन्द्रियों का सम्बन्ध होने पर पुरुष को जो ज्ञान उत्पन्न होता है उसे प्रत्यक्ष कहते है। अनुमान - लिंग से उत्पन्न होनेवाले लैंगिक ज्ञान को अनुमान कहते है।, शाबर भाष्य में अनुमान का पूरा लक्षण इस प्रकार बताया है - 'ज्ञान सम्बन्धस्यैक देशदर्शनादसंतिकृष्टेऽर्थे बुद्धिरनुमानम्' साध्य और साधन के अविनाभाव का यथार्थ परिज्ञान रखने वाले पुरुष को एकदेश साधन के देखने से असन्निकृष्टपरोक्ष साध्य अर्थ का ज्ञान होना अनुमान कहलाता है। __आगम - नित्य वेद से उत्पन्न होनेवाले ज्ञान को शाब्द-आगम कहते है। शाबर भाष्य में शब्द का लक्षण किया है ‘शब्द ज्ञानदसंनिकृष्टेऽर्थे बुद्धि शाब्दम्' यह शब्द इस अर्थ का वाचक है इस संकेत ज्ञान को शब्द ज्ञान कहते है। इस संकेत ग्रहण के बाद शब्द सुनने पर जो परोक्ष अर्थ का भी ज्ञान होता है उसे शाब्द प्रमाण कहते है। प्रत्यक्ष भी घट-पटादि पदार्थों का शाब्द ज्ञान होता है। उपमान प्रमाण - प्रसिद्धार्थस्य साधर्म्यदप्रसिद्धस्य साधनम्। प्रसिद्ध अर्थ की सदृशता से अप्रसिद्ध अर्थ की सिद्धि करता उपमान है। जैसे कि - गौ आदि को अच्छी तरह से जानने वाले पुरुष को गवय - रोज को देखते ही गवय में रहनेवाली समानता से परोक्ष गौ में गवय के सादृश्य का ज्ञान उपमान है। यद्यपि गौ में गवय की समानता मौजुद थी परन्तु उपमान के पहले पुरुष को समानता का ज्ञान नहीं था। उपमान प्रमाण से गौ' इस गवय के समान है। यह सादृश्य ज्ञान हो जाता है। अर्थापत्ति - दृष्ट पदार्थ की अनुपपत्ति के बल से अदृष्ट अर्थ की कल्पना को अर्थापत्ति कहते है। . | आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VI MUNIA सप्तम् अध्याय | 462 )