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________________ 321-388 321 324 325 325 331 336 364 पंचम अध्याय कर्म मिमांसा 1) कर्म की परिभाषा 2) कर्म का स्वरूप 3) कर्म की पौद्गलिकता 4) कर्म बन्ध की प्रक्रिया .5) कर्मो के भेद-प्रभेद 6) कर्मो का स्वभाव 7) मूर्त का अमूर्त पर उपघात 8) कर्तृभाव कर्मभाव परस्पर सापेक्ष 9) कर्म और पुनर्जन्म 10) कर्म और जीव का अनादि सम्बन्ध 11) कर्म के विपाक 12) कर्म बंध के हेतुओं के प्रतिपक्ष उपाय 13) कर्म का सर्वथा नाश कैसे 14) गुणस्थान में कर्म का विचार 15) कर्म की स्थिति 16) कर्म के स्वामी 17) कर्म का वैशिष्ट्य 365 366 366 368 370 371 372 375 377 378 छट्टा अध्याय 389-438 योग दर्शन 1) योग की व्युत्पत्ति 2) योग की परिभाषा योग का लक्षण अ) निश्चयनय से 389 390 393 1111111111111111111431
SR No.004434
Book TitleHaribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekantlatashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trsut
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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