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________________ सा. श्री समर्पणलताश्रीजी, सा. श्री वीतरागलता श्रीजी, सा. श्री श्रेयसलताश्रीजी आदि ने सभी प्रकार से अनुकूलताएँ एवं सहयोग दिया उसी का यह परिणाम है कि यह शोध प्रबन्ध शीघ्र पूर्ण हुआ। इन सभी की में विशेष कृतज्ञ हूं। इस शोध-प्रबन्ध का मुख्य श्रेय प्राप्त होता है जैन विश्व भारती संस्थान-लाडनूं के कुलपति डॉ. श्रीमान् संबरी मंगल प्रज्ञाजी एवं कुलसचिव प्रोफेसर जगतराम भट्टाचार्यजी को जिन्होंने मुझे यह शोध प्रबन्ध लिखने की स्वीकृति प्रदान की। अतः में उनकी आभारी हूं, साथ ही उपनिदेशक श्री आनंद प्रकाशजी त्रिपाठी जो मेरे शोध-प्रबन्ध को सकारात्मक रूप प्रदान करने में प्रमुख मार्गदर्शक रहे। अतः उनका आभार सदा के लिए अविस्मरणीय रहेगा। इस शोध-प्रबन्ध का मुख्य आधार स्तम्भ है माननीय महोदय विद्वद्वर्य पंडितजी श्री गोविंदरामजी व्यास' जो मात्र मेरे शोध प्रबन्ध के दिशा-निर्देशक ही नहीं बल्कि इसको दिव्याकृति प्रदान करने में प्रतिष्ठाता भी है। अतः इस समय उनका स्मरण करना मेरा उत्तरदायित्व है। माननीय ज्योतिषज्ञ विद्रद्वर्य पंडितजी श्री हीरालालजी शास्त्री जिन्होंने मुझे 12 वीं से लेकर एम.ए. तक के अध्ययन में अपना पूरा समय देकर अध्यापन करवाया। और पी.एच.डी. के लिए हमेशा प्रेरणा देते रहे साथ ही माननीय विद्रद्रर्य पंडितजी श्री जयनंदन झा की प्रेरणा मिलती रही। अतः आदरणीय द्रयों के प्रति में हृदय से अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती हूं। मेरे इस शोध प्रबन्ध की मुख्य आधार शिला मेरे संसारी माता-पिता है जिन्होंने मुझे जन्म से ही व्यवहारिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा के संस्कारों से आप्लावित किया / संयम के पश्चात् जब भी मिलन होता तब यही कहते गुरु वैयावच्च एवं अध्ययन में पीछे कदम मत हटाना / उनकी प्रेरणा एवं आशीर्वाद ही इस शोध-प्रबन्ध की सफलता के सोपान है। साथ ही संसारी भ्राता-भाभीयाँ, जीजाजी-भगिनियाँ आदि सभी की पूर्ण इच्छा थी कि आप कैसे भी पुरुषार्थ करके पी.एच.डी. करो, आपको हम तन-मन-धन से किसी भी समय सहयोग करने के लिए तैयार है। अतः इस समय सभी को याद करना मेरा कर्तव्य है। यह शोध-प्रबन्ध कार्य भीनमाल की पावन धरा से प्रारम्भ हुआ एवं हैदराबाद की धन्यधरा पर शताब्दी वर्ष में पूर्ण हुआ। जो मेरे लिए गौरव का विषय है। इस विशाल शोध IIIIIIIIA 26
SR No.004434
Book TitleHaribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekantlatashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trsut
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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