________________ एक वर्ष चार माह 'कर्मग्रंथ' 140 में भी संज्वलन क्रोधादि का स्वरूप बताया गया है। जिसका कोष्टक इस प्रकार है | संज्वलन क्रोधादि का कोष्टक कषाय स्वभाव काल घातक प्रापक अनंतानुबंधी क्रोध पर्वत की रेखा यावजीव सम्यक्त्व नरकगति अनंतानुबंधी मान पर्वत के स्तम्भ यावज्जीव सम्यक्त्व नरकगति अनंतानुबंधी माया वंशमूल यावज्जीव सम्यक्त्व नरकगति अनंतानुबंधी लोभ किरमची रंग यावजीव सम्यक्त्व नरकगति अप्रत्याख्यान क्रोध पृथ्वी की रेखा एक वर्ष देशविरति तिर्यंचगति अप्रत्याख्यान मान हड्डी के स्तंभ देशविरति तिर्यंचगति अप्रत्याख्यान माया मेढ के सींग एक वर्ष देशविरति तिर्यंचगति अप्रत्याख्यान लोभ चक्रमल एक वर्ष देशविरति तिर्यंचगति प्रत्याख्यान क्रोध धूलि की रेखा चार माह सर्व विरति मनुष्यगति प्रत्याख्यान मान काष्ठ के स्तंभ सर्व विरति मनुष्यगति प्रत्याख्यान माया गोमूत्र चार माह सर्व विरति मनुष्यगति प्रत्याख्यान लोभ काजल का रंग चार माह सर्व विरति मनुष्यगति संज्वलन क्रोध जल की रेखा 15 दिन यथाख्यात चारित्र / देवगति संज्वलन मान वेंतलता 15 दिन यथाख्यात चारित्र * देवगति संज्वलन माया वांस का छिलका | 15 दिन यथाख्यात चारित्र देवगति संज्वलन लोभ 15 दिन यथाख्यात चारित्र देवगति कषाय वेदनीय मोहनीय कर्म के वर्णन के पश्चात् अब नोकषाय वेदनीय मोहनीय कर्म के भेदों का वर्णन किया जाता है। इत्थी पुरिस नपुंसग वेद तिंग चेव होइ नायव्वं / हासरति अरति भयं, सोग दुगंछा य छक्कंति // 141 जो कषाय तो न हो, किन्तु कषाय के सहवर्ती हो कषाय के उदय के साथ जिसका उदय होता हो अथवा कषायों को उदय के साथ जिसका उदय होता हो अथवा कषायों को पैदा करने में उत्तेजित करने में सहायक हो उसे नोकषाय कहते है। जिस कर्म के उदय से जीव नोकषाय का वेदन करता है उसे नोकषाय कहते है।४२ नोकषाय वेदनीय मोहकर्म के नौ भेद है - 1. स्त्रीवेद, 2. पुरुषवेद, 3. नपुंसकवेद, 4. हास्य, 5. रति, 6. अरति, 7. भय, 8. शोक, 9. जुगुप्सा। हल्दी [ आचार्य हरिभद्रमरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VIIIIIII TA पंचम अध्याय | 348 ]