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________________ . पू. आचार्यदेवेश श्री जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. के आज्ञानुवर्तिनी पू. गुरुणीजी श्री कोमललताश्रीजी म.सा. की सुशिष्या साध्वीजी श्री अनेकान्तलताश्रीजी म.सा. की श्री हरिभद्रसूरीश्वजी म.सा.' के विषय पर रीसर्च कर परीक्षा देने के बाद पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त के शुभ अवसर पर महावीरकुमार मोहनलालजी संघवी की ओर से..... हार्दिक अभिनन्दन * विशेष साध्वीजी श्री अनेकान्तलता श्रीजी म.सा. की शोध-ग्रन्थ की तैयारी दो-तीन साल से चल रही थी। 2007 के वर्ष में श्री कान्तिलालजी भगुजी परिवार द्वारा राजमहेन्द्री में पूज्यश्री का चातुर्मास आयोजित किया गया। हमारे श्रीसंघ के प्रबल पुण्योदय से साध्वीजी की पुस्तक के प्रूफ देखने का, पुस्तक की अंतिम | तैयारी का तथा उपाधि प्राप्ति के पूर्व की अंतिम मौखिक परीक्षा आदि का सभी लाभ राजमहेन्द्री संघ को मिला। लाडनूं विश्व विद्यालय के मुख्य अधिकारी डॉ. श्री जितेन्द्रजी जैन राजमहेन्द्री पधारे एवं पूज्याश्री की अंतिम मौखिक परीक्षा लेकर उन्हें उत्तीर्ण घोषित कर 'पी.एच.डी.' की पदवी से सम्मानित किया। इस अवसर पर राजमहेन्द्री के सकल श्री संघ में हर्ष का कोई पार न रहा। इस शुभ अवसर पर श्री राजमहेन्द्री सकल संघ ने, महोत्सव आयोजित कर पूज्याश्री को पी.एच.डी. की उपाधि को ग्रहण करने की विनंती की। लेकिन पूज्याश्री की आत्मीय इच्छा पूज्य आचार्यदेव राष्ट्रसंत श्रीमद्विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. की पावन निश्रा में ही उपाधि ग्रहण करने की थी। पूज्या साध्वीजीश्री का गुरु के प्रति समर्पण भाव देखकर, हमें बडी प्रसन्नता हुई। . चातुर्मास दरम्यान पूज्या साध्वीजी प्रत्येक कार्य में पूज्य आचार्यश्री को वन्दन करने के बाद ही प्रारम्भ करती थी और अपनी गुरु मैया पू. साध्वीजी श्री कोमललताश्रीजी म.सा. से हर कार्य की आज्ञा लेकर ही कर रही थी। आपश्री ने सदैव दादा गुरुदेवश्री के प्रति, पू. आचार्यश्री के प्रति तथा गुरुमैया के प्रति समर्पण भाव रखा है। इसी गुण की वजह से आपश्री ने इतनी लघु वय में ही इतने परिश्रम का काम बड़ी सरलता से पूर्ण कर पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। चातुर्मास में आपके निकट रहने का, काम करने का तथा आपकी सेवा करने का जो अवसर प्राप्त हुआ, वे सभी पल हमारे लिए सदैव अविस्मरणीय रहेंगे। आप इसी तरह स्वाध्याय में दिन दुगनी और रात चौगुनी तरक्की करे तथा जगत के सभी जीवों को प्रतिबोध कर उन्हें भवपार करें। इसी आशा के साथ..... राजमहेन्द्री (आ.प्र) 07-9-2008 महावीरकुमार मोहनलालजी संघवी (सियाणा)
SR No.004434
Book TitleHaribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekantlatashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trsut
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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