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________________ परित्याग करता है। जिनदासगणी महत्तर के अभिमतानुसार श्रमण को मन-वचन-काय से सत्य पर आरूढ़ होना चाहिए। यदि मन-वचन काया की एक रूपता नहीं है तो वह मृषावाद है। जिन शब्दों से अन्य जीवों को आन्तरिक व्यथा उत्पन्न होती हो ऐसे हिंसाकारी, कठोर शब्द भी श्रमण के लिए त्याज्य है और यहाँ तक कि जिस भाषा के प्रयोग से हिंसा होने की शक्यता हो ऐसी भाषा परित्याज्य है। काम, क्रोध, लोभ, हास्य एवं भय के वशीभूत होकर पापकारी निश्चयकारी दूसरों के मन को कष्ट देने वाली भाषा भले ही वह मनोविनोद के लिए कही गयी हो श्रमण को नहीं बोलनी चाहिए। अहिंसा के बाद सत्य का कथन इसीलिए किया गया है कि सत्य अहिंसा पर आधृत है। सत्य का इतना अधिक महत्त्व है कि उसे भगवान् की उपमा से अलंकृत किया गया है और सम्पूर्ण लोक का सार तत्त्व कहा है।२७८ अस्तेय श्रमण का तृतीयव्रत है श्रमण बिना स्वामी की आज्ञा के एक तिनका भी नहीं ले सकता है संयम उपयोगी आवश्यक वस्तुओं को स्वामी की आज्ञा से स्वीकारता है। अदत्तदान अनेक दोषों का जनक है। वह अपयश का कारण और अनर्थ कर्म है इसलिए इस महाव्रत का सुंदर रूप से पालन करता है। चतुर्थ महाव्रत ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य के पालन से मानव का अन्त: करण प्रशस्त गम्भीर और सुस्थिर होता है। ब्रह्मचर्य के नष्ट होने पर अन्य सभी नियम उपनियमों का भी नाश होता है। अब्रह्मचर्य आसक्ति और मोह का कारण है जिससे आत्मा का पतन निश्चय होता है। अत: ब्रह्मचर्य पालन में आन्तरिक और बाह्य दोनो प्रकार की सावधानी आवश्यक है। असावधानी साधना में स्खलना पहुँचाती है। ब्रह्मचर्य के पालन का जहाँ अधिक महत्त्व बताया गया है। वहाँ उसकी सुरक्षा के लिए कठोर नियमों (नव वाड़ो) का भी विधान किया गया अपरिग्रह श्रमण का पाँचवा महाव्रत है श्रमण ब्राह्य और आभ्यन्तर दोनों प्रकार के परिग्रह से मुक्त रहता है। अल्प हो चाहे अधिक हो सचित्त हो या असचित्त सभी प्रकार के परिग्रह का त्याग करता है। परिग्रह की वृत्ति आन्तरिक लोभ की प्रतीक है। श्रमण को जीव की आवश्यकताओं की दृष्टि से कुछ धर्मोपकरण रखने पड़ते है जैसे कि वस्त्र, पात्र, कम्बल, रजोहरण आदि। श्रमणों को उन उपकरणों पर भी ममत्व-नहीं रखना चाहिए क्योंकि ममत्वभाव साधना की प्रगति में बाधक बनता है। आचारांग' 279 के अनुसार जो पूर्ण स्वस्थ श्रमण है वह एक वस्त्र से अधिक न रखे। श्रमणीयों के चार वस्त्र रखने का विधान है। प्रश्न - व्याकरण२८० में श्रमणों के लिए चौदह उपकरणों का विधान है। 1) पात्र 2) पात्रबन्धक 3) पात्र-स्थापना 4) पात्र के सरिया 5) पटल 6) रजस्त्राण 7) गोच्छक 8) प्रच्छादक 9) ओढने की चादर विभिन्न मापोंकी तीन चादरे रख सकता है इसलिए ये तीन उपकरण माने गये है 10) रजोहरण 11) मुखवत्रिका 12) मात्रक 13) चोलपट्टा। बृहत्कल्पभाष्य में अन्य वस्तुओं का भी विधान मिलता है। ये सभी उपकरण अहिंसा एवं संयम की वृद्धि के लिए है न कि सुख सुविधा के लिए। पाँच महाव्रतों के साथ छट्ठा रात्रिभोजन परित्याग है। श्रमण सम्पूर्ण रूप से रात्रिभोजन का परित्याग | आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIA चतुर्थ अध्याय | 297 |
SR No.004434
Book TitleHaribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekantlatashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trsut
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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