________________ श्रीपाल धरा की शीलवती विद्यावती महार्या अनेकान्तलताश्रीजी म. का प्रतिभामय प्रकर्ष प्रादुर्भूत हुआ। इसी श्रीपाल धरा पर महाकवि माघ, ब्रह्मगुप्त, सिद्धर्षि जैसे महषज्ञों का आविर्भाव हुआ था। प्राज्ञानपृथ्वी की सन्तति ही, प्राज्ञों की वाङ्गयी सपर्या कर सफल बनती है। आचार्य हरिभद्र राजस्थान की राजवंती धरा के सपूत रहे है। उनके दार्शनिक तथ्य को जीवन का प्रपेयपथ्य स्वीकारनेवाली आर्या अनेकान्तलताश्रीजी भी राजस्थानी ही है, फिर भी आर्याएँ अखिल आर्यावर्त की आर्या है। आचार्य हरिभद्र का दिव्य दयित दार्शनिक दृष्टिकोण, सोपज्ञ 'ललित विस्तरा' में अनेकान्तजय पताका में, सर्वज्ञसिद्धि में, जो वर्णित मिला है, वह उनके संबोधश्रेय का अनेकान्तमय चिरन्तन-ध्वज है। योगविद्या के महाप्राज्ञ महापुरुष होकर वाङ्गयी वसुमती के किर्ती कल्पतरु रहे। धर्मबिन्दु जैसे ग्रन्थों के सूत्रकार, घोडशक जैसे प्रकरण प्रबन्धों के रम्य रचनाकार बनकर, अजर अमर हो गए। अन्य दार्शनिक सिद्धान्तों को निर्देर निराक्षेप लक्ष्य से सापेक्षभाव से सम्मान देने में दूरदर्शिता का परिचय देने में प्राथमिकता निभाई-उपजाई। . ऐसे हरिभद्र के हार्द का सौहार्द का में सदा अभिलाषी रहा हूं। तथा अनेकान्तलताश्रीजी को भी हितकारिणी हरिभद्र की पर्युपासना का निमन्त्रण देता रहा हूं और आजीवन देता रहूंगा। वि.सं. 2065 भाद्रपद कृष्ण, वत्स द्वादशी गुरुवार, 28 अगस्त 2008 पं. गोविन्दराम व्यास हरजी जि. जालोर (राजस्थान)