________________ 140 श्रीजैनधर्मवरस्तोत्रम् 'च'-'उ'सद्दा पुण एत्थं अत्थविसेसप्पयासणे णेया / गाहाए चरिमद्धं सव्वेसु वि तुल्लमत्थेसुं // 7 // ['च'-'उ'शब्दौ पुनः अत्र अर्थविशेषप्रकाशने ज्ञेयौ / गाथायाः चरमा सर्वेषु अपि तुल्यमर्थेषु // 7 // ] तृतीया परिपाटी-शत्रुञ्जयतीर्थवन्दनम् 'चत्तारि पयं पुव्वं व अट्ठ दस चउविभत्तवीस त्ति / पंचजुआ तेवीसं सत्तुंजयसिहरए वंदे // 8 // ['चत्तारि पदं पूर्ववत् अष्ट दश चतुर्विभक्तविंशतिः इति / पञ्चयुतां त्रयोविंशतिं शत्रुञ्जयशिखरे वन्दे // 8 // ] दोय त्ति हंति इंदा दो-सग्गा तस्स पालगा तेण / दोएहिं वंदिया दोयवंदिया हुंति जिणचंदा // 9 // ['दोय' इति भवन्ति इन्द्रा द्यौः-स्वर्गः तस्य पालकाः तेन / द्योपैर्वन्दिता 'दोयवंदिया' भवन्ति जिनचन्द्राः // 9 // ] चतुर्थी परिपाटी-नन्दीश्वरद्वीपचैत्यवन्दनम् चउ अडगुण बत्तीसं दो दस वीस त्ति मिलिय बावन्ना / नंदीसरे चउसद्दा मयंतरे वीस चेइए वंदे // 10 // [चत्वारोऽष्टगुणा द्वात्रिंशत् द्वौ दश विंशतिरिति मिलिता द्विपञ्चाशत् / नन्दीश्वरे च-उशब्दौ मतान्तरे विंशति चैत्यान् वन्दे // 10 // ] . पञ्चमी परिपाटी-विहरमानजिनवन्दनम् चत्तारि जंबुदीवे धायइसंडेऽट्ठ पुक्खरवरद्धे / दोरहिआ दस अट्ठ उ वीसं वंदे विहरमाणे // 11 // [चतुरो जम्बूद्वीपे धातकीखण्डेऽष्ट पुष्करवरार्धे / द्विरहिता दश अष्ट तु विंशतिं वन्दे विहरमानान् // 11 // ] षष्ठी परिपाटी-विंशतिजाततीर्थङ्करवन्दनम् जंबूदीवे चउरो दु दु अरिहा पुव्वपच्छिमविदेहे / अड अड धायइ पुक्खर उक्कोसं वीसं जम्मओ वंदे // 12 // [ जम्बूद्वीपे चतुरः द्वौ द्वौ अर्हन्तौ पूर्वपश्चिमविदेहयोः / अष्ट अष्ट धातक्यां पुष्कर उत्कृष्टतो विंशतिं जन्मतो वन्दे // 12 // ] सप्तमी परिपाटी-भरत-ऐरवततीर्थवन्दनम् अट्ठ त्ति अट्ठ कम्मा चत्तारिअट्ठ कम्मरिउरहिआ / दो अत्ति दोहिं भेएहिं जम्मणओ विहरमाणा वा // 13 //