________________ 136 श्रीजैनधर्मवरस्तोत्रम् निज निर्मल ज्ञाने करी निरखे लोकालोक / १४विमल जिनेश्वर मनिं वस्यो जिम दिनकरस्युं कोक // 14 // आदर कीजइ तेहस्युं जे पहुंचाइ आश / / १५चन्द्रप्रभ जिन आठमा टाले गर्भावास // 15 // लंछन जेहनई केशरी वीरमांहिं जे वीर / त्रिशलानन्दन वंदई १६महावीर गिरिधीर // 16 // १७जिनभवन छई जेतलां त्रिभुवन मांहि सार / शाश्वतां नई अशाश्वतां प्रणमीजइ निरधार // 17 // चउ गति छेदे चउ दया आपइ अविचल ठाम / १८अनंतनाथ आराहिइं त्रिभुवनना जे स्वामि( ? म) // 18 // बांधो वरवीटांगणां १९पुस्तक भक्ति अपार / ज्ञान वधई जगिं जेहथी लहिइं अरथ विचार // 19 // चरणइं लंछन काछबो काजलकांति सुहाय / २°मुनिसुव्रत जिन प्रणमिइं आनंद अंग न माय // 20 // त्रिभुवन मांहिं जेह छड़ स्वर्ग मर्त्य पातालिं / .. २१प्रतिमा पूजुं प्रेमस्युं लोपइ ते जगि बाल // 21 // धर्म शब्द सघलई अछड़ पण अणलहिते मर्म / २२धर्म जिणेसर पनरमा पूज्ये जाई कर्म // 22 // पंच महाव्रत पालता शमता रस शृंगार / २२साधुशिरोमणि वंदिइं गिरुआ गुण आधार // 23 // मनवंछित आपइ सदा जंगम सुरतरु जेह / ' २४पार्श्वनाथ प्रभुता घणी सेवो धरि सुसिनेह // 24 // आदि अंत जिनवर तणी थई २५साधवी जेह / पंचमहाव्रत धारिणी प्रणमीजइ जगि तेह // 25 // जन्मसमई जिनराजनई शान्ति थई सवि देश / २६शान्ति जिणेसर सोलमा नमिइं जाइ किलेस // 26 // श्रेयांस प्रमुख २७श्रावक भला शंख शतक पर्यंत / दीपावक जिनधर्मना श्रावक ! सुण शोभंत // 27 //