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________________ 43 कर सकते हैं / ये परिव्राजक नदी, तालाब, पुष्करणी प्रभृति जलाशयों में प्रवेश नहीं करते और न किसी वाहन का ही उपयोग करते / न किसी प्रकार का नत्य आदि खेल देखते / वनस्पति आदि का उन्मलन नहीं करते और न धातुओं के पात्रों का ही उपयोग करते / केवल मिट्टी, लकड़ी और तुम्बी के पात्रों का उपयोग करते थे। अन्य रंग-बिरंगे वस्त्रों का उपयोग न कर केवल गेरुए वस्त्र पहनते थे / अन्य किसी भी प्रकार के सुगन्धित लेपों का उपयोग न कर केवल गंगा की मिट्टी का उपयोग करते थे। ये निर्मल छाना हुआ और किसी के द्वारा दिया हुआ एक प्रस्थ जितना जल पीने के लिए ग्रहण करते थे। ____ अम्बड़ परिव्राजक और उनके सात सौ शिष्यों का उल्लेख प्रस्तुत आगम में हुआ है। जैन साहित्य के बृहत् इतिहास में तथा 'जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज' ग्रन्थों में अम्बड़ परिव्राजक के सात शिष्य होना लिखा है पर वह ठीक नहीं है / मूल शास्त्र में 'सत्त अंतेवासीसयाई' पाठ है। उसका अर्थ सातसौ अंतेवासी होता है, न कि सात / अम्बड़ परिव्राजक का वर्णन जैन साहित्य में दो स्थलों पर आया हैऔपपातिक में और भगवती में / अम्बड़ परिव्राजक नामक एक व्यक्ति का और उल्लेख है, जो आगामी चौबीसी में तीर्थंकर होगा / औपपातिक में आये हुए अम्बड़ महाविदेह में मुक्त होंगे। इसलिए दोनों पृथक्-पृथक् होने चाहिए। भीषण ग्रीष्म ऋतु में जल प्राप्त होने पर भी उन्हें कोई व्यक्ति देनेवाला न होने से सात सौ शिष्यों ने अदत्त ग्रहण नहीं किया और संथारा कर शरीर का परित्याग किया। अम्बड़ और उसके शिष्य भगवान् महावीर के प्रति पूर्ण निष्ठावान् थे। अम्बड़ अवधिज्ञानी भी था / वह औदेशिक, नैमित्तिक आहार आदि नहीं लेता था। आजीवक श्रमण 62. दुघरंतरिया-एक घर में भिक्षा ग्रहण कर उसके पश्चात् दो घरों से भिक्षा न लेकर तृतीय घर से भिक्षा लेनेवाले। 63. तिघरंतरिया-एक घर से भिक्षा ग्रहण कर तीन घर छोड़कर भिक्षा लेनेवाले / 64. सत्तघरंतरिया-एक घर से भिक्षा ग्रहण कर सात पर छोड़कर भिक्षा लेनेवाले / 65. उप्पलबेंटियाकमल के डंठल खाकर रहनेवाले / 66. घरसमुदाणिय-प्रत्येक घर से भिक्षा ग्रहण करनेवाले / 67. विज्जुअंतरिया-बिजली गिरने के समय भिक्षा न लेनेवाले / 68. उट्टियसमण-किसी बड़े मिट्टी के बर्तन में बैठकर तप करनेवाले / 1. (क) जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-२, पृ. 25 (ख) जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ. 418. -डा. जगदीशचन्द्र जैन 2. स्थानांग, 9 वा सूत्र 61.3. (क) यश्चौपपातिकोपाङ्गे महाविदेहे सेत्स्यतीत्यभिधीयते सोऽन्य इति सम्भाव्यते / -स्थानांग वृत्ति, पत्र-४३४ (ख) दीघनिकाय के अम्बट्ठसुत्त में अंबट्ठ नाम के एक पंडित ब्राह्मण का वर्णन है / 'निशीथचूणि पीठिका में महावीर अम्बटु को धर्म में स्थिर करने के लिए राजगृह पधारे थे। -निशीथ चू. पीठिका, पृ. 20
SR No.004431
Book TitleUvavai Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size7 MB
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