________________ 42 45. कुडिव्वय-जो घर में रहते हों तथा क्रोध, लोभ और मोह रहित होकर अहंकार आदि का ___ परित्याग करने में प्रयत्नशील हों। 46. कनपरिव्वायग-कृष्ण परिव्राजक अर्थात् नारायण के परम भक्त / ब्राह्मण परिव्राजक 47. कण्डु-अथवा कण्ण / 48. करकण्डु 49. अम्बड-ऋषिभासित, थेरीगाथा और महाभारत में भी अम्बड परिव्राजकों के सम्बन्ध में उल्लेख है। 50. परासर-सूत्रकृतांग में परासर को शीत, उदक और बीज रहित फलों आदि के उपभोग से सिद्ध माना गया है। उत्तराध्ययन की टीका में द्वीपायन परिव्राजक की कथा है। उसका पूर्व नाम परासर था। 51. कण्हदीवायण-कण्हदीवायण जातक और महाभारत में इनका उल्लेख है। 52. देवगुप्त 53. नारय-नारद / क्षत्रिय परिव्राजक 54. सेलई 55. ससिहार [ससिहर अथवा मसिहार ?] 56. णग्गई [नग्नजित् ], 57. भग्गई 58. विदेह 59. रायाराय 60. रायाराम 61. बल ये परिव्राजक गण वेदों और वेदांगों में पूर्ण निष्णात थे / दान और शौच धर्म का उपदेश देते थे। इनका यह अभिमत था-जो पदार्थ अशुचि से सने हुए हैं, वे मिट्टी आदि से स्वच्छ हो जाते हैं। वैसे ही हम पवित्र आचार, निरवद्य व्यवहार से, अभिषेक-जल से अपने को पवित्र बना सकते हैं एवं स्वर्ग प्राप्त 1. थेरी गाथा-११६. 2. महाभारत-१।११४।३५. 3. सूत्रकृतांग-३।४।२।३, पृ. 94-95. 4. उत्तराध्ययन टीका-२, पृ. 39 5. कण्हदीवायण जातक-४, पृ.८३-८७. 6. महाभारत-१।११४।४५