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________________ परिशिष्ट-२ 279 पत्र 542 . "जहा उववाइए तहेव अट्टणसाला तहेव मज्जणघरे" त्ति यथौपपातिकेऽट्टणसाला व्यतिकरो...... पत्र 545 "जहा दढपइन्ने" त्ति यथौपपातिके दृढप्रतिज्ञोऽधीतस्तथाऽयं वक्तव्यः तच्चैवम् पत्र 545 "एवं जहा दढपइन्नो" इत्यनेन यत्सूचितं तदेवं दृश्यम् पत्र 548 "जहा उववाइए" इत्यनेनयत्सूचितम् पत्र 549 "जहा अम्मडो" त्ति यथौपपातिके अम्मडोऽधीतस्तथाऽयमिह वाच्यः पत्र 563 "एवं जहा उववाइए जाव आराहग" त्ति इह यावत्करणादिदमर्थतो लेशेन दृश्यम् "एवं जहे" त्यादिना यत्सूचितम् पत्र 696 "एवं जहा उववाइए" इत्यादि भावितमेवाम्मडपरिव्राजककथानक इति / पत्र 924 "जहा उववाइए" त्ति अनेनेदं सूचितम् पत्र 924 "जहा उववाइए" त्ति अनेनेदं सूचितम् पत्र 924 "जहा उववाइए" त्ति अनेनेदं सूचितम् पत्र 563 ज्ञाता०वृत्ति पत्र 2 वर्णकग्रन्थोत्रावसरे वाच्यःविपाक सूत्र 1 / 1 / 70 जहा दढपइण्णे 2 / 1 / 36 जहा दढपइण्णे 2 / 10 / 1 जहा दढपइण्णे राजप्रश्नीय सूत्र सू० 3, 4 असोयवरपायवे पुढविसिलापट्टए वत्तव्वया ओववाइयगमेणं नेया सू० 688 एगदिसाए जहा उववाइए जाव अप्पेगतिया राजप्रश्नीयसूत्र वृत्ति पृ०३ सम्प्रत्यस्या नगर्या वर्णकमाह- (यहां औपपातिक का उल्लेख नहीं) यावच्छब्दकरणात् “सद्दिए कित्तिए नाए सच्छत्ते" इत्याद्यौपपातिकग्रन्थप्रसिद्धवर्णकपरिग्रहः पृ०१० अशोकवरपादपस्य पृथिवीशिलापट्टकस्य च वक्तव्यता औपपातिकग्रन्थानुसारेण ज्ञेया। यावच्छब्दकरणाद्राजवर्णको देवीवर्णकः समवसरणं चौपपातिकानुसारेण तावद्वक्तव्यं यावत्समवसरणं समाप्तम पृ०८ 1027
SR No.004431
Book TitleUvavai Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size7 MB
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