________________ 278 श्री औपपातिकसूत्रम् 12 / 32 13 / 107 14|107 14|110 15 / 186 15 / 189 25/569 25/570 25 / 571 एवं जहा कूणिओ तहेव सव्व जहा कूणिओ ओववाइए जाव पज्जुवासइ एवं जहा ओववाइए जाव आराहगा एवं जहा ओववाइए अम्मडस्स वत्तव्वया एवं जहा ओववाइए दढप्पइण्णवत्तव्वया एवं जहा ओववाइए जाव सव्वदुक्खाणमंतं जहा ओववाइए जाव सुद्धेसणिए जहा ओववाइए जाव लूहाहारे जहा ओववाइए जाव सव्वगाय पत्र 318 भगवती सूत्र वृत्ति पत्र 7 औपपातिकात् सव्याख्यानोऽत्र दृश्यः / पत्र 11. औपपातिकवद्वाच्या पत्र 317 "एवं जहा उववाइए" त्ति तत्र चेदं सूत्रमेवम् "एवं जहा उववाइए जाव" इत्यनेनेदं सूचितम् / 319 "जहा चेव उववाइए" त्ति तत्र चैवमिदं सूत्रम् पत्र 462 "जहा उववाइए" त्ति तत्र चेदं सत्रमेवं लेशतः पत्र 463 "जहा उववाइए" त्ति तदेव लेशतो दर्श्यते पत्र 463 "एवं जहा उववाइए" तत्र चैतदेवं सूत्रम् पत्र 463 "जहा उववाइए" त्ति चेदमेवं सूत्रम् पत्र 463 "जहा उववाइए परिसावन्नओ" त्ति यथा कौणिकस्यौपपातिके पत्र 476 "जहा उववाइए" त्ति एवं चैतत्तत्र पत्र 479 "जहा उववाइए" त्ति अनेन यत्सूचितं तदिदम् पत्र 481 "जहा उववाइए" त्ति करणादिदं दृश्यम् पत्र 482 "एवं जहा उववाइए" त्ति अनेन यत्सूचितं तदिदम् पत्र 519 "जहा उववाइए" इत्येतस्मादतिदेशादिदं दृश्यम् पत्र 520 "एवं जहा उववाइए" इत्येतत्करणादिदं दृश्यम् पत्र 521 "एवं जहेवे" त्यादि "एवम्" अनंतरदर्शितेनाभिलापेन यथौपपातिके सिद्धानधिकृत्य संहननाद्युक्तं तथैवेहापि पत्र 521 वाक्यपद्धतिरौपपातिकप्रसिद्धाऽध्येता