________________ बनवाया। दूसरी बात उत्तरवर्ती ग्रन्थों में यह भी मिलती है कि बुद्ध-निर्वाण के पश्चात् राजगृह में प्रथम संगति हुई, तब अजातशत्रु ने सप्तपर्णी गुफा के द्वार पर एक सभाभवन बनवाया था, जहाँ बौद्धपिटकों का संकलन हुआ। परन्तु इस बात का बौद्धधर्म के प्राचीनतम और मौलिक ग्रन्थों में किंचिन्मात्र भी न तो उल्लेख है और न संकेत ही है। यह सम्भव है कि उसमें बौद्धधर्म को बिना स्वीकार किये ही उसके प्रति सहानुभूति व्यक्त की हो / यह तो सब उसने केवल भारतीय राजाओं की उस प्राचीन परम्परा के अनुसार किया हो / सभी धर्मो का संरक्षण करना राजा अपना कर्तव्य मानता था।' धम्मपद अट्ठकथा में कुछ ऐसे प्रसंग दिये गये हैं। जो अजातशत्रु कूणिक की बुद्ध के प्रति दृढ़ श्रद्धा व्यक्त करते हैं पर उन प्रसंगों को आधुनिक मूर्धन्य मनीषीगण किंवदन्ती के रूप में स्वीकार करते हैं।' उसका अधिक मूल्य नहीं है। कुछ ऐसे प्रसंग भी अवदानशतक आदि में आये हैं, जिससे अजातशत्रु की बुद्ध के प्रति विद्वेष भावना व्यक्त होती है। लगता है, ये दोनों प्रकार के प्रसंग कुछ अति मात्रा के लिये हुए हैं। उनमें तटस्थता का अभाव सा है। __सारांश यह है, अजातशत्रु कूणिक के अन्तर्मानस पर उसकी माता चेलना के संस्कारो का असर था। चेलना के प्रति उसके मानस में गहरी निष्ठा थी। चेलना ने ही कूणिक को यह बताया था कि तेरे पिता राजा श्रेणिक का तेरे प्रति कितना स्नेह था? उन्होंने तेरे लिए कितने कष्ट सहन किये थे ! आवश्यकचूर्णि, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र प्रभृति जैन ग्रन्थों में उसका अपर नाम 'अशोकचन्द्र' भी मिलता है चेलना भगवान् महावीर के प्रति अत्यन्त निष्ठवान् थी। चेलना के पूज्य पिता राजा 'चेटक' भ. महावीर के परम उपासक थे। इसलिए अजातशत्रु कूणिक जैन था / यह पूर्णरूप से स्पष्ट हैं। कूणिक की रानियों में पद्मावती, धारिणी और सुभद्रा प्रमुख थी / आवश्यकचूर्णि° में आठ कन्याओं के साथ उसके विवाह का वर्णन है पर वहाँ आठों कन्याओं के नाम नहीं है। महारानी पद्मावती का पुत्र उदायी था, वह मगध के राजसिंहासन पर आसीन हुआ था / उसने चम्पा से अपनी राजधानी हटाकर पाटलीपुत्र में स्थापित की थी। भगवान् महावीर जैन इतिहास में भगवान् महावीर के भक्त अनेक सम्राटों का उल्लेख है, जो महावीर के प्रति अनन्य श्रद्धा रखते थे। आठ राजाओं ने तो महावीर के पास आर्हती दीक्षा भी स्वीकार की थी। किन्तु कूणिक - एक ऐसा सम्राट् था, जो प्रतिदिन महावीर के समाचार प्राप्त करता था और उसके लिए उसने एक पृथक् व्यवस्था कर रखी थी। दूसरे सम्राटों में यह विशेषता नहीं थी। इन सभी से यह सिद्ध है कि राजा कूणिक की महावीर के प्रति अपूर्व भक्ति थी। 1. Buddhist India, PP. 15. 16. 2. धम्मपद अट्ठकथा-१०-७; खण्ड-२; 605-606. 3. अवदानतक-५४ 4. आवश्यकचूणि उत्तरार्ध 5. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र. 6. आवश्यकचूणि उत्तरार्द्ध पत्र-१६४. 7. तस्स णं कूणियस्स रण्णो पउमावई नामं देवी होत्था / - निरयावली, सूत्र-८. 8. उववाई सूत्र 12. 9. औपपातिक सूत्र-५५ 10. कुणियस्स अट्ठहिं रायवरकन्नाहिं समं विवाहो कतो। - आव. चूर्णि उत्त. पत्र-१६७. 11. आवश्यक चूर्णि-पत्र-१७७