________________ सूत्र -120-133 ] अम्बडपरिव्राजकसामाचारी 173 पोसहोववासेहिं अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे 'त्ति शीलव्रतानिअणुव्रतानि गुणा-गुणव्रतानि विरमणानि-रागादिविरतिप्रकाराः प्रत्याख्यानानि-नमस्कारसहितादीनि पौषधोपवास:-अष्टम्यादिपर्वदिनेषूपवसनम्, आहारादित्याग इत्यर्थः / / 120 // __ 121 - अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स थूलगपाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए थूलगमुसावाए एवं थूलए अदिन्नादाणे सव्वे मेहुणे पच्चक्खाए थूलपरिग्गहे पच्चक्खाए जावज्जीवाए // 121 // __ 122- A अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ अक्खसोयपमाण-मेत्तं पि जलं सयराहं उत्तरित्तए, णण्णत्थ अद्धाणगमणेणंA // 122 // [122] ‘नो कप्पइ अक्खसोयप्पमाणमेत्तं पि जलं सयराहं उत्तरित्तए' अक्षश्रोतः प्रमाणा-गन्त्रीचक्रनाभिच्छिद्रप्रमाणा मात्रा यस्य तत्तथा, सयराह-अकस्मात् हेलयेत्यर्थः, // 122 // 123-133 - अंमडस्स णं परिव्वाययस्स नो कप्पड़ सगडं वा जाव सरिसं वा ओगाहित्तए नन्नत्थ अद्धाणगमणेण, एवं सगड-आसे-नडपेच्छा हरियपाए वत्थाभरणे मल्लाणुलेवणे भोयणफले य जाव णण्णत्थ एगाए गंगामट्टियाए // 123-133 // ___ 134 - अंबडस्स णं परिव्वायगस्स नो कप्पइ आहाकम्मिए वा, उद्देसिए वा मीसजाएति वा, अज्झोअरए इ वा, पूइयकम्मे इ वा, कीयगडे इ वा, पामिच्चे इ वा, अणिसिटे इ-वा, अभिहडे इ वा, रइए इ वा कंतारभत्ते इ वा दुभिक्खभत्ते इ वा, पाहुणगभत्ते इ वा, गिलाणभत्ते इ वा वद्दलियाभत्ते इ वा, भोत्तए वा पातए वा // 134 // ___ [134] 'आहाकम्मिए' इत्यादि व्यक्तं, नवरं 'रइए इ वत्ति रचितम्-औद्देशिकभेदो यन्मोदकचूर्णादि पुनर्मोदकतया कूरदध्यादिकं वा यत्करम्बकादितया विरचितं तद्रचितमित्युच्यते, इह चेतिशब्द उपप्रदर्शने, वाशब्दो विकल्पे, ‘कान्तारभत्तेइ व'त्ति कान्तारम्-अरण्यं तत्र *भिक्षाकाणां निर्वाहणार्थं यत्संस्क्रियते तत्कान्तारभक्तमिति, 'दुब्भिक्खभत्ते इ व'त्ति दुर्भिक्षभक्तं 1. अहापडि० खं. / / 2. AA चिह्नद्वयमध्यवर्तिपाठः पु.प्रे. JL नास्ति मु. V अस्ति / / 3. सगडं एवं चेव भाणियव्वं जाव णण्णत्थ एगाए गंगामट्टियाए-मु. / / 4. द्र.सू.१०० / / 5. द्र. सू.१००-११०|| ६.यावत्कर० खं. / / 7. JBI भिक्षुकाणां-मु.॥