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________________ 104 श्री औपपातिकसूत्रम् 53- तए णं से पवित्तिवाउए इमीसे कहाए लद्धढे समाणे हट्टतुट्ठ जाव हियए - ते बहवे दिण्ण-भति-भत्त-वेतणए पुरिसे सद्दावेत्ति, ते बहवे जाव सद्दावेत्ता एवं वयासि-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! समणाणं निग्गंथाणं समवसरणाइं गवेसह, तं जहा- आगंतारेसु आरामागारेसु आएसणेसु आवसहेसु पणियगिहेसु पणियसालासु जाणगिहेसु जाणसालासु कोट्ठागारेसु सुसाणेसु सुन्नागारेसु रुक्खमूलेसु / ___ तते णं ते पुरिसा पवित्तिवाउएणं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठ जाव हियया करयलपरिग्गहियं जाव कटु एवं सामिति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता समणाणं निग्गंथाणं समोसरणाई गवेसंति तं जहा-आगंतारेसु जाव रुक्खमूलेसु / ___ तत्थ णं एगे पुरिसे परिहिंडमाणे परिहिंडमाणे परिघोलमाणे परिघोलमाणे पुन्नभदं चेइयं उवगए, पासति य तत्थ समणं भगवं महावीरं सदेवमणुयासुराए परिसाए मज्झगयं धम्ममाइक्खमाणं तए णं से पुरिसे हट्टतुट्ठ 'जाव हियए जेणेव समणे भगवं महावीरं तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं करेति करित्ता वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ पुन्नभद्दाओ चेइयाओ पडिनिक्खमति पडिनिक्खमित्ता जेणेव चंपा नयरी जेणेव पवत्तिवाउए तेणेव उवागच्छइ तेणेव करयलपरि० जाव कटु पवित्तिवाउयस्स एयमटुं निवेएति / _तए णं से पवित्तिवाउए तस्स पुरिसस्स अंतियं एयमढे सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ जाव हियए - हाए कयबलिकम्मे जाव अप्पमहग्घाभरणालंकारालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता चंपं 1. द्र.सू.२०॥ 2. --- चिह्नद्वयमध्यवर्तिपाठः पु प्रे. [ अस्ति / मु. नास्ति // 3-4-5-6-7 द्रष्टव्यं सू. 20 //
SR No.004431
Book TitleUvavai Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size7 MB
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