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________________ 2. आगारद्वार - आगार अर्थात् अपवाद या छूट। प्रत्याख्यान लेते समय अपवाद इसलिए रखे जाते हैं, ताकि विशेष परिस्थितिवश भंग का दोष न लगे आगारद्वार के अंतर्गत कालिक प्रत्याख्यान में प्रत्येक के लिए अलग-अलग अपवादों का उल्लेख होता है। (क) नवकार - सूर्योदय होने के 48 मिनट पश्चात् नवकार गिनकर पूर्ण हो जाने तक आहार का त्याग करना। सूर्योदय के बाद दो घड़ी पूर्ण होना और नवकार मंत्र गिनकर दोनोंको ही ग्रहण किया जाता है, तभी प्रत्याख्यान पूरा होता है। (ख) पोरिसी (पौरुषी) - पुरुष के शरीर के बराबर छाया जिस समय हो, वह काल पौरुषी कहलाता है, अर्थात् सूर्योदय के बाद दिन का एक-चौथाई भाग सम्पन्न हो जाने पर पुरुष की छाया उसके शरीर की लम्बाई के बराबर हो जाती है, उसी समय को ही पौरुषी या प्रहर कहते हैं। (ग) परिमुड्ड-अवड्ड - सूर्योदय से दोपहर तक आहार का त्याग करना परिमुढ प्रत्याख्यान एवं सूर्योदय से तीन प्रहर तक आहार का त्याग अवड्ड कहलाता है। : (घ) एकासण-बियासण - एक ही स्थान पर बैठकर एक ही बार भोजन करना एकासन कहलाता है और एक ही आसन पर बैठकर दो बार भोजन करना बियासण है। - (ड.) एकठाण - एक ही स्थान पर बैठकर भोजन करना एकठाण होता है। इसमें मुंह और हाथ के अतिरिक्त कोई अंग नहीं हिलता है एवं चौविहारी होता है। वहीं एकासन में दूसरे अंग हिलते हैं तथा वह तिविहारी भी होता है। (च) आयंबिल - भात, उड़द आदि के साथ मांड या खट्टारस उपयोग में लाना आयंबिल प्रत्याख्यान है। (छ) अभक्तार्थ - जिसमें भोजन का कोई उपयोग नहीं होता है, वह उपवास प्रत्याख्यान है। उपवास तिविहार और चौविहार दोनों प्रकार का हो सकता है। (ज) पानी का आगार - मुनियों को सदैव तथा गृहस्थों को एकासन, उपवास आदि में अचित्त पानी का ही प्रयोग करना चाहिए। अचित्त पानी का प्रयोग ही पानी का आगार कहलाता है। (झ) चरिम - चरिम अर्थात् अंतिम। यह दिन और वर्तमान भव दोनों का हो सकता है। दिन के अंतिम भाग अर्थात् सूर्यास्त तक किया गया प्रत्याख्यान दिवस-चरिम 20
SR No.004428
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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