________________ छह प्रकार के संस्थानों की भी चर्चा की है। इसी क्रम में इस सबकी भी विस्तार से चर्चा की गई है कि किन-किन जीवों की कितनी कुलकोटियां होती हैं। वे किस प्रकार की योनि में जन्म ग्रहण करते हैं। उनका अस्थियों का ढांचा अर्थात् संघहन किस प्रकार का होता है तथा उनकी शारीरिक संरचना कैसी होती है? इसी क्रम में आगे पांच प्रकार के शरीरों की भी चर्चा की गई है और यह बताया गया है कि किस प्रकार के जीवों को कौन-कौन से शरीर प्राप्त होते हैं। योग-मार्गणा के अंतर्गत मन, वचन और काययोग की चर्चा की गई है और यह बताया गया है कि किस प्रकार के योग में कौन-सा गुणस्थान पाया जाता है। ____ योग-मार्गणा के पश्चात् वेद-मार्गणा की चर्चा की गई है। जैन परम्परा में वेद का तात्पर्य स्त्री, पुरुष अथवा नपुंसक की काम वासना से है। वेदमार्गणा की चर्चा के पश्चात् कषाय-मार्गणा की चर्चा है। इसमें क्रोध, मान, माया और लोभ- इन चार कषायों में प्रत्येक के अनन्तानुबंधी अप्रत्याख्यानीप्रत्याख्यानी एवं संज्वलन ऐसे चार-चार विभाग किए गए हैं और यह बताया गया है कि किस गुणस्थान में कौन से प्रकार के कषाय पाए जाते हैं। अग्रिम ज्ञान-मार्गणा के अंतर्गत पांच प्रकार के ज्ञानों की चर्चा है। इसमें मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्यज्ञान के भेद-प्रभेद भी बताए गए हैं तथा यह बताया गया है कि केवलज्ञान का कोई भेद नहीं होता है। आगे इसी प्रसंग में कौन से ज्ञान किस गुणस्थान में पाए जाते हैं, इसका भी संक्षिप्त विवेचन उपलब्ध होता है। ___ संयम-मार्गणा के अंतर्गत पांच प्रकार के संयमों की चर्चा की गई है और यह बताया गया है कि किस गुणस्थान में कौन-सा संयम पाया जाता है। इसी चर्चा के प्रसंग में पुलाक, बकुश, कुशील, निग्रंथ और स्नातक ऐसे पांच प्रकार के श्रमणों का भी उल्लेख किया गया है। दर्शन-मार्गणा के अंतर्गत चार प्रकार के दर्शनों का उल्लेख करते हुए यह बताया है कि किस गुणस्थान में कितने दर्शन होते हैं। लेश्या-मार्गणा के अंतर्गत छः लेश्याओं का विस्तृत विवेचन उपलब्ध होता है। इसी क्रम में लेश्या और गुणस्थान के सह-सम्बंध को भी निरूपित किया गया है। इसमें यह भी बताया गया है कि नारकीय जीवों और देवताओं में किस प्रकार लेश्या पाई जाती है, किंतु यहां हमें ध्यान रखना चाहिए कि नारकीय जीवों और देवों के सम्बंध में जो (47)