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________________ जीवसमास और बाद में गुणस्थान के नाम से 14 अवस्थाओं का चित्रण। कर्मविशुद्धि या कर्मविशुद्धि या 14 अवस्थाओं | 14 अवस्थाओं का आध्यात्मिक | आध्यात्मिक विकास | का उल्लेख है। उल्लेख है। विकास की दस की दृष्टि से अवस्थाओं का मिथ्यादृष्टि की गणना चित्रण, मिथ्यात्व करने पर प्रकार भेद का अन्तर्भाव | से कुल 13 करने पर 11 | अवस्थाओं का . / अवस्थाओं का उल्लेख। उल्लेख। सास्वादन, | उल्लेख है। सास्वादन, | सास्वादन सम्यमिथ्या दृष्टि सम्यक्- (सासादन) और . | (मिश्रदृष्टि) और मिथ्यादृष्टि और | अयोगी केवली | अयोगी केवली अयोगी केवली | अवस्था का पूर्ण | आदि का उल्लेख दशा का पूर्ण अभाव, किंतु है। अभाव। सम्यक्मिथ्यादृष्टि की उपस्थिति। | उल्लेख है। उल्लेख है। अप्रमत्तसंयत, अपूर्व करण अप्रमत्तसंयत, | अपूर्वकरण 28
SR No.004428
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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