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________________ वाला व्यक्ति है। वह पैसे से खरीदा जा सकता है। यह तो वैज्ञानिक की गुलामी है। ऐसे लोग अवैज्ञानिक हैं, यदि वैज्ञानिक (Scientist) वैज्ञानिक (Sceintific) नहीं बना तो विज्ञान मनुष्य के लिए ही घातक सिद्ध होगा। आज विज्ञान का उपयोग कैसे किया जाए, इसका उत्तर विज्ञान के पास नहीं अध्यात्म के पास है। विनोबा जी लिखते हैं कि आज युग की मांग से विज्ञान की जितनी ही शक्ति बढ़ेगी, आत्मज्ञान को उतनी ही शक्ति बढ़ानी होगी। आज अमेरिका इसलिए दुःखी है कि वहां विज्ञान तो है, पर अध्यात्म है नहीं, अतः सुख तो है, शांति नहीं। इसके विपरीत भारत में आध्यात्मिक विकास के कारण मानसिक शांति तो है, किंतु समृद्धि नहीं। आज जहां समृद्धि है वहां शांति नहीं और जहां शांति है वहां समृद्धि नहीं। इसका समाधान अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय में निहित है। अध्यात्म शांति देगा तो विज्ञान समृद्धि। जब समृद्धि और शांति दोनों ही एक साथ उपस्थित होंगी, मानवता अपने विकास के परम शिखर पर होगी। मानव स्वयं अतिमानव के रूप में विकसित हो जाएगा, किंतु इसके लिए प्रयत्न करना होगा। बिना . अडिग आस्था और सतत् पुरुषार्थ के यह सम्भव नहीं। ___ आज विज्ञान ने मनुष्य को सुख-सुविधा और समृद्धि तो प्रदान कर दी है, फिर भी मनुष्य भय और तनाव की स्थिति में जी रहा है। उसे आंतरिक शांति उपलब्ध नहीं है, उसकी समाधि भंग हो चुकी है। यदि विज्ञान के माध्यम से कोई शांति आ सकती है तो वह केवल श्मशान की शांति होगी। बाहरी साधनों से न कभी आंतरिक शांति मिली है, न उसका मिलना सम्भव ही है। इस प्रसंग में उपनिषदों का एक प्रसंग याद आ रहा है- नारद जीवनभर वेद-वेदांग का अध्ययन करते रहे। उन्होंने अनेक विद्याएं (भौतिक विद्याएं) प्राप्त कर ली, किंतु उनके मन को कहीं संतोष नहीं मिला। वे सनत्कुमार के पास आए और कहने लगे मैंने अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया। मैं शास्त्रविद् तो हूं, किंतु आत्मविद् नहीं। आत्मविद् हुए बिना शांति को नहीं पाया जा सकता। यद्यपि मेरे कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि हम विज्ञान और उसकी उपलब्धियों को तिलांजलि दे दें। वैज्ञानिक उपलब्धियों का परित्याग न तो सम्भव है, न औचित्यपूर्ण है, किंतु अध्यात्म ही विज्ञान का अनुशासक हो, तभी एक समग्रता या पूर्णता आएगी और मनुष्य एक साथ समृद्धि और शांति को पा सकेगा। ईशावास्योपनिषद् में जिसे हम पदार्थ-ज्ञान या विज्ञान कहते हैं, उसे अविद्या कहा गया है और जिसे हम अध्यात्म कहते हैं, विद्या कहा गया है। उपनिषद्कार दोनों के सम्बंध को उचित बताते हुए कहता है- जो पदार्थ-विज्ञान या अविद्या की उपासना करता (186
SR No.004428
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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