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________________ जैन साहब का यह संस्करण इसी कमी की पूर्ति करता है, उन्होंने अधिक श्रम करके इसे अंग्रेजी और हिन्दी पाठकों के लिए सुग्राह्य बनाया है। उनका हिन्दी और अंग्रेजी अनुवाद मूलग्रंथ के अति निकट है। मेरी यह अपेक्षा है कि उनकी यह कृति जन-जन में प्रसारित हो, ताकि उनका श्रम सार्थक हो सके। मेरी उनके प्रति यही शुभकामना है कि वे स्वस्थ रहकर जैन ग्रंथों के अंग्रेजी अनुवाद के माध्यम से जैन विद्या को विश्व में प्रसारित करें। अध्यात्मवाद की भूमिका ई.सन् की १७वीं १८वीं शती मानव जाति को दुःखों से मुक्त करना ही सभी साधना पद्धतियों का प्रमुख लक्ष्य था। उन्होंने इस तथ्य को गहराई से समझने का प्रयत्न किया कि दुःख का मूल किसमें है। इसे स्पष्ट करते हुए उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि समस्त भौतिक और मानसिक दुःखों का मूल व्यक्ति की भोगासक्ति में है। यद्यपि भौतिकवाद मनुष्य की कामनाओं की पूर्ति के द्वारा दुःखों के निवारण का प्रयत्न करता है, किंतु वह उस कारण का उच्छेद नहीं कर सकता, जिससे दुःख का यह स्रोत प्रस्फुटित होता है। भौतिकवाद के पास मनुष्य की तृष्णा को समाप्त करने का कोई उपाय नहीं है। वह इच्छाओं की पूर्ति के द्वारा मानवीय आकांक्षाओं को परितृप्त करना चाहता है, किंतु यह अग्नि में डाले गए घृत के समान उसे परिशांत करने की अपेक्षा बढ़ाता ही है। उत्तराध्ययनसूत्र में बहुत ही स्पष्ट रूप से कहा गया है कि चाहे स्वर्ण और रजत के कैलाश के समान असंख्य पर्वत भी खड़े हो जाए, किंतु वे मनुष्य की तृष्णा को पूरा करने में असमर्थ है। न केवल जैनधर्म अपितु सभी आध्यात्मिक धर्मों में एकमत से इस तथ्य को स्वीकार किया है कि समस्त दुःखों का मूल कारण आसक्ति, तृष्णा या ममत्व बुद्धि है, किंतु तृष्णा की समाप्ति का उपाय इच्छाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति नहीं है। भौतिकवाद हमें सुख और सुविधा के साधन तो दे सकता है, किंतु वह मनुष्य की आसक्ति या तृष्णा का निराकरण नहीं कर सकता। इस दिशा में उसका प्रयत्न तो टहनियों को काटकर जड़ को सींचने के समान है। जैन आगमों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि तृष्णा आकाश के समान अनन्त है, उसकी पूर्ति सम्भव नहीं है।
SR No.004428
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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