________________ ३०वें द्वार में तीर्थंकरों के वर्ण अर्थात् शरीर के रंग की चर्चा की गई है। ___ ३१वां द्वार किस तीर्थंकर के साथ कितने व्यक्तियों ने मुनिधर्म स्वीकार किया उनकी संख्या का निर्देश करता है। ३२वां द्वार तीर्थंकरों की आयु का निर्देश करता है। 33- द्वार में प्रत्येक तीर्थंकर ने कितने-कितने मुनियों के साथ निर्वाण प्राप्त किया, इसका उल्लेख है, तो ३४वें द्वार में किस तीर्थंकर ने किस स्थान पर निर्वाण प्राप्त किया, इसका उल्लेख है। ३५वां द्वार तीर्थंकरों एवं अन्य शलाका पुरुषों के मध्य कितने-कितने काल का अंतराल रहा है, इसका विवेचन प्रस्तुत करता है, जबकि ३६वें द्वार में इस बात की चर्चा है कि तीर्थंकर का तीर्थ या शासन कितने काल तक चला और बीच में कितने काल का अंतराल रहा। इस प्रकार हम देखते हैं कि ७वें द्वार से लेकर ३६वें द्वार तक 29 द्वारों में मुख्यतः तीर्थंकरों से सम्बंधित विभिन्न तथ्यों का निर्देश किया गया है। ___ ३७वें द्वार से लेकर ९७वें द्वार तक इकसठ द्वारों में पुनः जैन सिद्धांत और आचार सम्बंधी विवेचन प्रस्तुत किए गए हैं, यद्यपि बीच में कहीं कहीं तीर्थंकरों के तप आदि का भी निर्देश है। ३७वें द्वार में दस आशातनाओं का उल्लेख है, तो ३८वें द्वार में चौंरासी आशातनाओं का उल्लेख है। इसी चर्चा के प्रसंग में इस द्वार में मुनि (यति) चैत्य में कितने समय तक रह सकता है, इसकी चर्चा भी हुई है। ३९वें द्वार में तीर्थंकरों के आठ महाप्रतिहार्यों और ४०वें द्वार तीर्थंकरों के चौतीस अतिशयों (विशिष्टताओं) की चर्चा है। . ४१वां द्वार उन अठारह दोषों का उल्लेख करता है, जिनसे तीर्थंकर मुक्त रहते हैं, दूसरे शब्दों में जिनको उन्होंने नष्ट कर दिया है। ४२वां द्वार जिन-शब्द के चार निक्षेपों की चर्चा करता है और यह बताता है कि ऋषभ, शांति, महावीर आदि जिनों के नाम नामजिन हैं, जबकि कैवल्य और मुक्ति को प्राप्त जिन भावजिन अर्थात् यथार्थजिन हैं। जिन-प्रतिमा को स्थापनाजिन कहा जाता है और जो भविष्य में जिन होने वाले हैं, वे द्रव्यजिन कहलाते हैं। ___४३वां द्वार किस तीर्थंकर ने दीक्षा के समय कितने दिन का तप क्रिया था, इसका विवेचन करता है, इसी क्रम में ४४वें द्वार में किस तीर्थंकर को केवल-ज्ञान उत्पन्न