________________ ... के साथ विषयों का विस्तार से विवेचन हुआ है, किंतु ८वें द्वार से विवेचन संक्षिप्त रूप से ही किया गया है। * इसी क्रम में 'अष्टमद्वार' में चौबीस तीर्थंकरों के प्रथम गणधरों के नामों का उल्लेख हुआ है। ___९वें द्वार के अंतर्गत प्रत्येक तीर्थंकर की प्रवर्तिनियों अर्थात् साध्वी प्रमुखाओं के नामों का उल्लेख किया गया है। १०वें द्वार के अंतर्गत तीर्थंकर नाम-कर्म के उपार्जन हेतु जिन बीस स्थानकों की साधना की जाती है, उनकी चर्चा है। यह विवेचन ज्ञाताधर्मकथा के मल्ली अध्ययन में मिलता है। ११वें द्वार में तीर्थंकरों की माताओं और पिताओं का उल्लेख है। १२वें द्वार में तीर्थंकरों की माता-पिता अपने देह का त्याग कर किस गति में उत्पन्न हुए इसकी चर्चा है। __१३वें द्वार में किसी काल विशेष में जिनों की जघन्य और उत्कृष्ट संख्या का विचार किया गया है। १४वें द्वार के अंतर्गत यह बताया गया है कि किस जिन के जन्म में समय लोक में अधिकतम और न्यूनतम जिनों की संख्या कितनी थी। १५वें द्वार में जिनों की गणधरों की समग्र संख्या का विवेचन किया गया है। इसी क्रम में आगे १६वें द्वार में मुनियों की संख्या का, १७वे द्वार में साध्वियों की संख्या का, १८वे द्वार में जिनों के वैक्रय-लब्धिधारक मुनियों की संख्या का, १९वें द्वार में वादियों की संख्या का, २०वें द्वार में अवधिज्ञानियों की संख्या का, २१वें द्वार में केवलज्ञानियों की संख्या का, २२वें द्वार में मनःपर्यवज्ञानियों की संख्या का, २३वें द्वार में चतुर्दश पूर्वो के धारकों की संख्या का, २४वें द्वार में जिनों के श्रावकों की संख्या का और २५वें द्वार में श्राविकाओं की संख्या का निर्देश हुआ है। इसी क्रम में २६वां द्वार तीर्थंकरों के शासन-सहायक यक्षों के नाम का उल्लेख करता है, तो २७वां द्वार यक्षिणियों के नामों को सूचित करता है। . प्रवचनसारोद्धार का २८वां द्वार तीर्थंकरों के शरीर के परिमाण (लम्बाई) का निर्देश करता है, तो २९वां द्वार प्रत्येक तीर्थंकरों के विशिष्ट लांछन की चर्चा करता है। (141)