________________ पार्श्वनाथ विद्यापीठ के मेरे शिष्य डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय की सूचना के अनुसार प्रवचनसारोद्धार में सात प्रकीर्णकों की भी लगभग ..2 गाथाएं मिलती हैं। कहीं-कहीं पाठभेद को छोड़कर ये गाथाएं भी प्रवचनसारोद्धार में समान रूप से भी उपलब्ध होती हैं। इसमें आचारांगनियुक्ति की 1, अंगुलसप्तति की 3, आवश्यकनियुक्ति की 71, आवश्यक भाष्य की 7, उत्तराध्ययन की 12, उत्तराध्ययन नियुक्ति की 13, ओघनियुक्ति की 22, ओघनियुक्तिभाष्य की 12, प्राचीन कर्मग्रंथों की 19, चैत्यवंदन महाभाष्य की 17, जीवसमास की 28, जम्बूदीपप्रज्ञप्ति की 4, दशवैकालिक नियुक्ति की 18, धर्मसंग्रहणी की 3, निशीथभाष्य की 27, पंचकल्पभाष्य की 2, पंचसंग्रह की 3, पंचासक प्रकरण की 44, पंचवस्तुक प्रकरण की 30, पिण्डविशुद्धि की 15, पिण्डनियुक्ति की 2, प्रज्ञापना की 14, बृहत्संग्रहणी की 78, बृहकल्पभाष्य की 44, विशेषणवती की 1, भगवती की 4, व्यवहारभाष्य की 4, समवायांग की 3, स्थानांग की 15, संतिकर की 4, सप्ततिशतस्थान की 1, संबोधप्रकरण की 81, श्रावकव्रतभंग प्रकरण की 30 एवं प्रकीर्णकों की देविंदत्थओं की 7, गच्छाकार की 1, ज्योतिषकरण्डक की 3, तित्थोगाली की 32, आराधनापताका (प्राचीन अज्ञात आचार्य रचित) की 20, आराधनापताका (वीरभद्राचार्य रचित) की 6 एवं पजंताराहजा (पर्यंत-आराधना) की 4 गाथाएं मिलती हैं। यह भी स्पष्ट है कि ये सभी ग्रंथ नेमिचंद्रसूरि के प्रवचनसारोद्धार से प्राचीन हैं। इससे यह निश्चित है कि इन गाथाओं की रचना रचनाकार ने स्वयं नहीं की है, अपितु इन्हें पूर्व आचार्यों द्वारा रचित ग्रंथों से यथावत् ले लिया गया है। इस प्रकार लगभग 700 गाथाएं अन्य ग्रंथों से अवतरित हैं, यद्यपि इनमें लगभग 100 गाथाएं ऐसी भी हैं, जो अनेक ग्रंथों में समान रूप से मिलती हैं, फिर भी लगभग 600 गाथाएं तो अन्य ग्रंथों से अवतरित हैं ही। मात्र इतना ही नहीं, अभी भी अनेक ग्रंथ ऐसे हैं, जिनकी गाथा सूचियों के साथ प्रवचनसारोद्धार की गाथाओं का तुलनात्मक अध्ययन नहीं हुआ है। अंगविजा जैसे कुछ प्राचीन ग्रंथों से और भी समान गाथाएं मिलने की सम्भावना है। इससे ऐसा लगता है कि प्रवचनसारोद्धार की लगभग आधी गाथाएं तो अन्य ग्रंथों से संकलित हैं। ऐसी स्थिति में नेमिचंद्रसूरि को इसका ग्रंथकार या कर्ता मानने पर अनेक विपत्तियां सामने आती हैं, किंतु जब तक सम्पूर्ण ग्रंथ की सभी गाथाएं संकलित न हों तब तक अवशिष्ट गाथाओं के रचनाकार तो नेमिचंद्रसूरि (द्वितीय) को ही मानना होगा। प्राचीनकाल में ग्रंथ रचना करते (135)