________________ वंश्यानुचरितं चेति पुराण पंचलक्ष्णम्' विभिन्न पुराणों में यही पुराणलक्षण के रूप में वर्णन है। सर्ग (सष्टि उत्पत्ति), प्रतिसर्ग (पुनरचना या पुनः सृष्टि), वंश (राजकुलों का वर्णन या महापुरुषों की वंशपरम्परागत इतिहास का वर्णन), मन्वन्तर (मनु के समय की अवधि का निर्देश), वंशानुचरित (राजकुलों या महापुरुषों के परम्परागत इतिहास का निरूपण) इन पाँच लक्षणों से लक्षित ग्रन्थ का नाम पुराण है। कहीं-कहीं एक ही विषय की प्रचुरता दिखाई देती है। यथा मार्कण्डेयपुराण में मन्वन्तर वर्णन की ही प्रधानता है। श्रीमद् भागवत में वंशानुचरित की, विष्णुपुराण में सर्ग (सृष्टि) की ही प्रमुखता ज्ञात होती है। इस प्रकार कई पुराणों में विषयों में न्यूनाधिकता परिलक्षित होती है। पुराणों के इन प्रमुख विषयों का संक्षिप्त विवेचन अधोलिखित है१. सर्ग . सर्ग के विषय में श्रीमद् भागवत का कथन है-अव्याकृतगुणक्षोमान् महतस्त्रिवतेऽहम भूततन्मात्रेन्द्रियार्थानं सम्भवः सर्ग उच्यते // 68 साम्यावस्थापन्न त्रिगुणात्मक प्रधान प्रकृति के गुण परिणाम क्षोभ से महान् तत्व उत्पन्न होता है। महान् बुद्धितत्व से अहंकार, सात्त्विक अहंकार से एकादश इन्द्रियाँ, तामस अहंकार से पंचतन्मात्राएं, पज्वतन्मात्राओं से पंचमहाभूतों की उत्पत्ति होती है। इसी का नाम सर्ग या सृष्टि का आरम्भ है। सांख्यादर्शन में भी सृष्टि का क्रमवर्णन इसी प्रकार है। समस्त जगत् के कार्य-संधान का मूलतत्व प्रधान को माना है। जैसा कि सांख्यसूत्र में कहा गया है-“सत्वरजतमसां साम्यावस्था प्रकृतिः प्रकृतेः महतेऽहंकार:६९ ईश्वर कृष्ण ने अपनी सांख्यकारिका में ठीक इसी क्रम से सृष्टि वर्णन किया है। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा के, देवताओं के, मनुष्यों के दिन-रात, पक्ष-मास, वर्षादि के परिमाण भिन्न-भिन्न हैं। इसकी काल गणना (प्रत्येक युग, मन्वन्तर, कल्प तथा मनुष्य देव एवं ब्रह्मा का दिन-मास वर्ष परिमाण) प्रस्तुत है।" 15 निमेष = 1 काष्ठा, 30 काष्ठा / = 1 कला, 30 कला = 1 घटी, 2 घटी = 1 मुहूर्त, 30 मुहूर्त = 1 अहोरात्रि, 30 अहोरात्रि = 2 पक्ष, 2 पक्ष = एक मास, 6 मास = एक अयन, 2 अयन = 1 वर्ष (मानववर्ष) = उत्तरायन, दक्षिणायन, छ: माह का उत्तरायण = देवताओं का रात पुराण परिचय / 44