________________ एते वेदा न वेदा स्युः दया यत्र न विद्यते दयादानपरो नित्यं जीवमेव प्ररक्षयेत् चाण्डालोऽप्यथ शूद्रो वा सर्वे ब्राह्मण उच्यते // स्नाने यदा महत्पुण्यं कस्मान्मत्स्येषु वै नहि // श्रीराम शर्मा, “पदापुराज पृ. ४७३-४७८-श्लो. 15-21, 37-38, 4 66. (अ) विष्णु पुराण 3.18.2-12 / (ब) डॉ. सर्वानन्द पाठक “विष्णुपुराण का भारत, पृ. 286 67. गत्वाथ मोहयामास रजिपुत्रान् बृहस्पति जिन धर्म समास्थाव वेदबारं स वेदवित् / / वेदबाह्यान् परिज्ञाय हेतुवाद समन्वितान् // मत्स्य पुराण 24.47 68. श्री मधुकर मुनि “जैन धर्म : एक परिचय' पृ६ 69. श्रीमद् विजयराजेन्द्र सूरीश्वर "अभिधानराजेन्द्र कोष, पृ. 1458 70. रागादा देषादा मोहाद्वा वाक्यमुच्चतेतदनृतम् / यस्य तु नैते दोषास्तस्यान्तकारणं किं स्यात् / / आव 4 अ 71. णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवझायाणं . णमो लोए सव्वसाहूणं-भगवती सूत्र, कल्पसूत्र 72. सं. प्रो. सागरमल जैन "श्रमण" पृ 12 (जनवरी-मार्च, 92) 73. श्री अमोलक ऋषिजी म “जैनतत्वप्रकाश पृ. 121, 188, 263 74. तत्वार्थसूत्र 7.13 75. अमृतचन्द्रसूरि “पुरुषार्थसिद्धयुपाय" पृ. 25 (श्लोक 44, 43) 76. जं इच्छसि अप्पणतो. जं च न इच्छसि अप्पतो . तं इच्छ परस्स वि, ए नियागं बिणसासयं / / बृहत्कल्प भाष्य 4584 77. “पढमं नाणं तओ दया" -दशवै 4.10 78. श्रमण (जनवरी-मार्च 1994) पृ 12 79. . सं. कलाकुमार . - "श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना" 80. “एयं खु नापिनो सारं, जन हिंसइ किंचणं अहिंसा समयं चेव, एयावन् वियाषिया // " -सूत्रकृतांग 1.1.4.10 81. सं. गौतम ओसवाल “अर्हत् बैन टाइम्स” –जनवरी 1994 - याज्ञवल्क्य स्मृति 1.156 ... बृहन्नारदीय पुराण 22.12.16 82. सयं सयं पसंसंता, गरहंता परं वयं 35 / पुराणों में जैन धर्म