________________ अणं न पातमश्विनाहुं वे धिय, इन्द्रियेण इन्द्रियदत्तमोजः // अथर्ववेद, कारिका 19.42.4 36. पुमानन्तर्वान्त् स्थविरः पयस्वान् वसो: कबन्धमृषभो विमति जातवेदाः // अथर्ववेद, कारिका 9.4.3 37. ऋग्वेद 10.136.1 38. वही, मं. 10.90.11-12 39. धम्मकहाणुओगे-पृ. 26 40. श्रीमद् भागवत पुराण, पंचम स्कन्ध 2-6 41. वही 42. विष्णु पुराण 2.1.27-31 43. शिव पुराण 7.2.9 शतरूद्रसंहिता अध्याय 4 44. अग्रोक्त प्रभास पुराण 49 46. लिंग पुराण 48.19-23 . आग्नेय पुराण 10.11-12 ब्रह्माण्डपुराण पूर्व 14.53 विष्णु पुराण 2.1.26-27 कूर्म पुराण 41.36-38 नारद पुराण पूर्व ४८वाँ अध्याय वाराह पुराण ७४वाँ अध्याय स्कन्द पुराण ३७वाँ अध्याय बेचरदास दोशी “जैन साहित्य का बृहद् इतिहास" पृ. 22 (प्रस्तावना) 48. वही पृ. 23 49. डॉ. राजकुमार जैन—“वृषभदेवं तथा शिव सम्बन्धी प्राच्य मान्यताएँ" नामक लेख - “मुनिश्री हजारीमल स्मृति ग्रंथ” -पृ. 609-629 40. Dr. Radha Krishnan "Indian Philosophy" P. 233 (Hindi Translation) 51. बेचरदास दोशी “जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्रस्तावना, पृ. 26-27 52. ऋग्वेद (अ) 1.14.89.6 (ब) 1.24.180.10 (स) 3.4.53.17 . (द) 10.12.178.1 53. "स्वस्ति न ताक्ष्योंऽरिष्टनेमिः ऋग्वेद 1.1.16 54. वाजसनोयि माध्यन्दिन शुक्लयजुर्वेद 9.25 55. “अत: यत् तपोदानमार्जवमहिंसासत्यवचनमिति ता अस्य दक्षिणा -छांदोग्योपनिषद् 3.17.4 56. महाभारत, अनुशासन पर्व, 149, 50-82 .57. स्कन्द पुराण, प्रभास खण्ड . .. 33 / पुराणों में जैन धर्म