________________ सबसे पहला तीर्थंकर राजा ऋषभदेव था, जिसके पुत्र भरत के नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष हुआ।"१७ वैदिक संस्कृति में जैनधर्म पूर्वोक्त विद्वानों के मतों से तो जैन धर्म की प्राचीनता सिद्ध होती है किन्तु साथ ही साथ वैदिक संस्कृति के साहित्य द्वारा भी इसकी ऐतिहासिकता स्पष्ट होती है। वैदिक संस्कृति में भी श्रमण संस्कृति का स्पष्ट उल्लेख है। उनमें न केवल जैन तीर्थंकरों का उल्लेख है अपितु उनके जीवन के अनेक प्रसंग, उनकी स्तुति, उनके द्वारा प्रवर्तित मार्ग, उनके उपदेश तथा सिद्धान्तों का भी विस्तृत वर्णन है, जिनको संक्षिप्ततः आगे प्रस्तुत किया जा रहा है। व्रात्य ___'वात्य' शब्द का अर्थ यद्यपि मनुस्मृति आदि में आचारहीन किया गया। 18 व्रात्य के सम्बन्ध में कहा गया है कि “उपनयन आदि से रहित मानव 'व्रात्य' कहा जाता है, जो वैदिक कृत्यों के लिये अनधिकारी होता है। परन्तु वह विद्वान और तपस्वी हो तो ब्राह्मण भले ही द्वेष करें परन्तु वह पूजनीय होगा।९।। .... इससे यह स्पष्ट होता है कि यह ब्राह्मणेतर परंपरा थी। मनुस्मृति से पूर्ववर्ती ग्रन्थों में व्रात्य शब्द का प्रयोग विद्वत्तम महाधिकारी, पुण्यशील इत्यादि के लिये है।०. __ डॉ. सम्पूर्णानन्द तथा बलदेव उपाध्याय ने इसका अर्थ परमात्मा किया है।२१ किन्तु व्रात्य किसी देहधारी से सम्बन्धित है। व्रात्य का मूल शब्द 'व्रत' है। इसी अर्थ की पुष्टि डॉ. हेवर ने इस प्रकार से की है-“व्रात्य का अर्थ व्रतों में दीक्षित अर्थात् जिसने आत्मानुशासन की दृष्टि से स्वेच्छापूर्वक व्रत स्वीकार किये हों, वह व्रात्य है।"२२ - यह निर्विवाद सत्य है कि व्रतों की परम्परा श्रमण संस्कृति की मौलिक देन है। वेद, ब्राह्मण और आरण्यक साहित्य में कहीं भी व्रतों का उल्लेख नहीं आया है। उपनिषदों, पुराणों और स्मृतियों में जो उल्लेख हुआ है, वह सब पार्श्वनाथ के बाद का है। पार्श्वनाथ की व्रत परंपरा का उपनिषदादि पर प्रभाव पड़ा, इस तथ्य को मानते हुए रामधारीसिंह दिनकर का कथन है कि “हिन्दुत्व और जैन धर्म आपस . में इतने घुलमिल कर इतने एकाकार हो गये कि आज का साधारण हिन्दू यह जानता भी नहीं कि अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह में जैन धर्म के उपदेश थे, हिंदुत्व के नहीं।"२४ वेदों के अनुसार व्रात्य अर्थात् अप्रतिबद्ध बिहारी५ व्रतों को मानने वाले, अर्हन्तों (सन्तों) की उपासना करते थे और प्राकृत भाषा बोलते थे। उनके सन्त ब्राह्मण और क्षत्रिय थे। इस व्रात्य परंपरा के लोग पर्यटनशील, व्रतनिष्ट एवं अहिंसा के 13 / पुराणों में जैन धर्म