________________ यद्यपि यह निश्चित नहीं कहा जा सकता है कि वर्तमान में उपलब्ध पुराणों का जो स्वरूप है वह बहुत प्राचीन है, क्योंकि उनमें भी अनेक परिवर्तन होते रहे हैं, किन्तु फिर भी यह तो कहा जा सकता है कि महावीर से पूर्व भी वैदिक संस्कृति प्रचलित थी। वेद, पुराण आदि किसी न किसी रूप में थे, अतः उनमें भी जैनधर्म का उल्लेख प्राप्त होने से जैनधर्म की अतिप्राचीनता सिद्ध होती निष्कर्षतः श्रमण संस्कृति एवं वैदिक संस्कृति ये दोनों ही प्रमुख एवं प्राचीन गंगा-यमुना दो सांस्कृतिक धाराएँ रही हैं। जैनधर्म प्राचीन श्रमण संस्कृति का ही एक रूप है। पुराणों में श्रमण संस्कृति की धारा का उपलब्ध होना उनके पारस्परिक प्रभाव को अभिव्यक्त करता है। पुराणों में जैनधर्म की उपलब्धि को दृष्टि-सम्मुख रखते हुए श्रीमती वीणापाणि का यह मत है कि वस्तुतः पुराण जैनधर्म से परिचित हैं। जैनधर्म के प्रचार-काल में पुराण भी उनके प्रभाव में स्वयं को वंचित न रख सके। यही कारण है कि पद्म, विष्णु आदि विभिन्न पुराण जैनधर्म सम्बन्धित विषय-वस्तु को विशद् रूप से अभिव्यक्त करते हैं। 300 9 / पुराणों में जैन धर्म