________________ है-समस्त कर्मों का क्षय हो जाने से मुक्तात्मा में समस्त कर्मजन्य उपाधियों का भी अभाव है; अत: मुक्तात्मा न दीर्घ है, न हस्व है, न वृत्त है, न त्रिकोण है, न चतुष्कोण है, न परिमण्डलाकार और न लम्बा है। वह कृष्ण, नील, पीत, रक्त, श्वेतवर्ण वाला भी नहीं है। वह सुगन्धवान् और दुर्गन्धवान् भी नहीं है। वह तिक्त, कटुक, अम्ल, खट्टा और मीठा रस वाला भी नहीं है। न वह कठोर, कोमल, गुरू (भारी), लघु (हल्का), शीत, उष्ण, स्निग्ध या रूक्ष है। वह स्री, पुरुष और नपुंसक भी नहीं है। - आचार्य कुन्दकुन्द ने भी कहा है-“मोक्ष दशा में न सुख है, न दुःख है, न पीड़ा है, न बाधा है, न जन्म-मरण है। इन्द्रियाँ, उपसर्ग, मोह, व्यामोह, निद्रा, चिन्ता नहीं है। न आर्त तथा रौद्र विचार ही हैं। वहाँ तो धर्म (शुभ) और शुक्ल (शुद्ध) विचारों का भी अभाव है। सिद्ध कर्ममुक्त होने से जन्म-मरण, रोग-शोक-सन्ताप आदि सभी से रहित हैं। आत्मस्वरूप से सब एक समान हैं। जहाँ एक सिद्ध है, वहाँ अनन्त सिद्ध हैं और जहाँ अनन्त सिद्ध हैं, वहाँ एक सिद्ध है। वे एक-दूसरे को अवगाहन करके रहे हुए हैं। जैन दर्शन वर्णित उपर्युक्त स्वरूप के समान पुराणों में अनामातत्व का वर्णन दृष्टव्य है, जिसका पर्याप्त साम्य है। जैसाकि शिवपुराण में उल्लिखित है निखिलोपाधिहीनो वै यदा भवति पूरुषः / तदा विवक्षते खण्डज्ञानरूपी निरंजनः / / निर्गुणो निरुपाधिश्च निरंजनोऽव्ययस्तथा। न रक्तो न च पीतश्च न श्वेतो नील एव च // अर्थात् (शिव के विश्वातीत रूप को अनामातत्त्व कहते हैं) वह नामरूप से परे है, परात्पर है, उसी को निरंजन कहा गया है; किन्तु कुछ सम्प्रदाय निरंजन को भी जगदुत्पत्ति का कारण मानते हैं। वास्तव में वह अलख है, निरंजन है, निरुपाधिक है और निर्गुण है, उसका सृष्टि-उत्पाद से कोई सम्बन्ध नहीं। सहजावस्था का रूप है। वर्ण जो त्रिगुण के द्योतक हैं-रक्त, पीत, श्वेत, नील-उसमें कोई वर्ण नहीं है। न तो वह स्थूल है, न कृश ही।" ___ काल, कला, विद्या, नियति, राग एवं द्वेष कुछ भी नहीं होता, इनका किसी के साथ अभिनिवेश नहीं है। न तो इनका कोई कर्म एवं कर्मविपाक ही होता है। कर्म के फल सुख-दुःख से भी इनका कोई सम्बन्ध नहीं है। कालत्रितय गोचर आशय, कर्मसंस्कार, भोग तथा भोग-संस्कार से भी ये प्रभावित नहीं होते। जन्म-मरण, कांक्षित-अकांक्षित, विधि-निषेध, मुक्ति-बंधन आदि से भी इनका कुछ सम्बन्ध नहीं . . 48. 257 / पुराणों में जैन धर्म