________________ 20. देशानुशिष्टं कुलं धर्ममग्यं स्वगोत्र धर्म -न चासत्सु नरेषु कुर्यात् // परस्वे परदारे च न कार्या बुद्धिरुत्तमैः। -वामनपुराण पृ. 181, अ 14, श्लो. 38-39-44 . 21. विष्णु पुराण (1) पृ. 416-426 22. (अ) आचार्य हरिभद्र-'धर्मबिन्दु' प्रकरण 1 (ब) आचार्य हेमचन्द्र 'योगशास्र' 1.47-56 23. श्री अमोलकऋषिजी म 'जैनतत्त्वप्रकाश', पृ. 567 24. वृथाटनं वृथा दानं वृथा च पशुमारणम् .. न कर्तव्यं गृहस्थेन वृथा दारपरिग्रहः // . -वामनपुराण (1) पृ. 181, अं 14, श्लो. 41 25. जैनतत्त्वप्रकाश-पृ. 672 26. तिलोक शताब्दी अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ. 43 27. वही, पृ. 43 28. जवाहिरलाल जैन 'श्रमण संस्कृति, पृ. 18-21 29. ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खण्ड, अ 36 30. शिवपुराण, रुद्र संहिता, अ. 16 31. भागवतपुराण सप्तम स्कन्द 32. ब्रह्मवैवर्तपुराण, गणपतिखण्ड, अध्याय 24 . 33. डॉ. वैकुण्ठनाथ शर्मा 'ब्रह्मवैवर्तपुराण : सांस्कृतिक विवेचन' / 34. (अ) शाम्यति क्रोधादिकषायान् इति शमनः / (ब) श्राम्यति श्रममानयति पंचेन्द्रियाणि मनश्चेति श्रमण, श्राम्यति संसारविषयखिनो भवति, तपस्यतीति च श्रमण: (स) सह मनसा शोभनेन निदान परिणाम लक्षण तापरहितेन च वर्तते इति समना: (द) सम् इति समतया शत्रुमित्रादिषु अणति प्रवर्तते इति समणः, सर्वजीवैकतुल्य वर्तते इति समण: जह मम न पियं दुक्खं, जाणिय एमेव सव्वजीवाणं न हणइ न हणावेइ य, सममणइ तेण सो समणो // -तिलोक शताब्दी अभिनंदन ग्रन्थ श्री घेवरचन्द्र जी बाँठिया 'जैन श्रमण की व्याख्या' से 35. अहिंसासच्चं च अतेणगं च ततो य बंभ अपरिग्गहं च पडिवज्जिया पंच महब्वयाइं चरिज धम्मं जिणदेसियं विउ / -उत्तराध्ययन, 21.12 36. अहिंसा प्रथमो हेतुर्यमस्त यामिनां वरा / सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यापरिगहौ // -लिंगपुराण (1) पृ. 68, श्लो. 10 37. इरियाभासेसणादाणउच्चारसमिई इय मणगुत्ती वयगुत्ती कायगुत्ती य अट्ठमा / / -उत्तराध्ययन, 24.2 38. (अ) “नोज़ न तिर्यग्दूरं वा न पश्यन्पर्यटेद् बुधः युगमात्रं महीपृष्ठं नरोऽगच्छद् विलोकयन् // (ईया) -विष्णुपुराण (1) पृ. 439, 3.12.39 विशेष आचार / 212