________________ 2. स्पर्शयोग प्राणायाम-युक्त उक्त मनोवृत्ति स्पर्शयोग है। 3. भावयोग-यदि यही मंत्र के स्पर्श से रहित हो तो वह भावयोग है। 4 अभावयोग-जिसमें सारा विश्व तिरोहित रूप हो जाता है, उसे अभावयोग कहते हैं। 5. महायोग जिसमें उपाधि रहित शिव-स्वभाव का ही चिन्तन किया जाता है, वह मनोवृत्ति महायोग है।०२ द्वितीय वर्गीकरण त्रिधा है१. ज्ञानयोग-चित्त का आत्मा के साथ संयोग होना। 2: भक्तियोग अभीष्ट देव के साथ आत्मा का एकीकरण होना / 3. क्रियायोग-चित्त का बाह्यार्थ संयोग होना।०३ इनके अतिरिक्त अष्टांग योग तथा षडंग योग का वर्णन भी पुराणों में किया गया है। इनके नाम इस प्रकार हैं-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि / षडंग योग के अन्तर्गत इनमें से पूर्ववर्ती दो अंगों का नाम नहीं आता। अष्टांगयोगों में से-. 1. यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) एवं 2. नियम (तप, भक्ति आदि गुण) का विवेचन सामान्य आचार में पर्याप्त किया जा चुका है। 3. आसन-शिव पुराण में आठ प्रकार के आसनों का उल्लेख है-स्वस्तिक, पद्य, मध्येन्दु, वीर, योग, प्रसाधित, पर्यंक एवं यथेष्ठ है। पतंजलि के अनुसार सुखपूर्वक स्थिर होकर बैठना आसन है।०७ : जैन परंपरा के प्राचीन साहित्य (आगमों में अष्टांग योग का तो उल्लेख नहीं है, किन्तु इसके तथ्यों का उल्लेख पाया जा हैं। आसन का वर्णन वहाँ कायक्लेश वप के अन्तर्गत किया गया है। आसन दो प्रकार के होते हैं-शरीरासन एवं ध्यानासन। ध्यानासन के लिए दो अपेक्षाएँ हैं... 1. शरीर स्थिर रहे और 2. सुखपूर्वक बैठा जा सके। .. ___ बैनागमों में इन आसनों का उल्लेख इस प्रकार प्राप्त होता है-कायोत्सर्ग, स्थान, उकडूं, पद्मासन, वीरासन, गोदोहिकासन तथा पर्यकासन / 09 . 4 प्राणायाम-पूरक, कुम्भक, रेचक तथा ये भी द्विविध 1 अगर्भ 2 सगर्भ तथा चतुर्विध कन्यक, मध्यम, उत्तम, पर इत्यादि प्रकार का प्राणायाम बताया गया है। प्राणायाम श्वास-प्रश्वास के गतिविच्छेद को कहा जाता है।९० प्राणायाम का कोई विशेष महत्त्व जैन परंपरा में नहीं है। “जैन प्रक्रिया के अनुसार विजातीय द्रव्य का 199 / पुराणों में जैन धर्म