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________________ जैनागमों में भी श्रमण के लिए यही कहा गया है कि वह मोक्ष को उद्देश्य बनाकर विषयादि की इच्छा नहीं करे और पूर्वकर्मों को क्षय करने के लिए प्रयत्नशील रहे। मुक्ति की प्रक्रिया विविध उपमाओं द्वारा इस प्रकार बताई है-“श्रद्धारूपी नगर, क्षमादिरूप किला और तप-संयमरूप अर्गला बनाकर मुक्तिरूप शास्रों द्वारा दुर्जय कर्मशत्रुओं से अपनी रक्षा करनी चाहिए। फिर पराक्रमरूपी धनुष की ईर्यासमितिरूप डोरी बनाकर, धैर्य रूपी केतन से सत्य द्वारा उसे बाँधना चाहिए। उस धनुष पर तपरूपी बाण चढ़ाकर कर्मरूपी कवच का भेदन करे; इस प्रकार संग्राम से निवृत्त होकर मुनि भवभ्रमण से मुक्त हो जाते हैं / .. पुराण तथा जैन धर्म में वर्णित मुनिधर्म का अवलोकन करने से यह ज्ञात . होता है कि दोनों ही साधु अन्तर्दृष्टि से अत्यन्त सन्निकट है तथा बाह्यदृष्टि से भी बहुत सा साम्य है। दोनों में मुनि धर्म को मोक्ष का साक्षात् कारण (राजमार्ग) माना है। वस्तुतः संन्यास का मार्ग ही निवृत्ति का मार्ग है, अतः उसका निवृत्तिप्रधान श्रमणसंस्कृति से साम्य होना सहज ही सम्भव है। योगी का योगाचार (अष्टांग योग) योग का अर्थ युज् धातु से घन प्रत्यय से बने हुए इस योग शब्द के दो अर्थ है१. जोड़ना, संयोजित करना तथा 2. समाधि, मन स्थिरता।" आचार्य पतञ्जलि ने “चित्तवृत्ति के निरोध को योग" कहा है। 19 आचार्य हरिभद्र के अनुसार वे सब साधन योग हैं, जिनसे आत्मा शुद्ध होता है-मुक्त होता है। आध्यात्मिक भावना तथा समता का विकास करने वाला, मनोविकारों का क्षय करने वाला एवं मन-वचन-कर्म को संयत रखने वाला धर्मव्यापार ही श्रेष्ठ योग है। “चित्तवृत्ति-निरोध” तथा “मोक्षप्रापक धर्मव्यापार" का अर्थ सूक्ष्म दृष्टि से एक ही निकलता है। चित्तवृत्ति निरोध का तात्पर्य-संसाराभिमुख चित्तवृत्तियों को रोककर मोक्षाभिमुख बनाना। अपने मन, वचन एवं काय (शरीर) की प्रवृत्तियों पर नियंत्रण कर लेने से योगी को योगी कहा जाता है, क्योंकि वह अपने योगों (उपलब्धियों) को साध लेता है। योगांग पुराणों में योगों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया गया है। प्रथम वर्गीकरणानुसार योग पाँच हैं 1. मंत्रयोग-मंत्रों के अभ्यासवश, जो मन की वृत्ति मंत्र के वाच्यार्थ-गोचर होकर स्थिर हो जाती है। विशेष आचार / 198
SR No.004426
Book TitlePuranome Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2000
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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