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________________ सन्दर्भ-सूची 1. डॉ. ए. बी. शिवाजी "भारतीय दर्शन में कर्म सिद्धान्त" -जयगुजार-जुलाई-अगस्त, 1980 2. “कर्तुरीप्सिततमं कर्म" -अष्टाध्यायी 1.4.79. 3. उमेश मित्र -'भारतीय दर्शन' पृ. 247 4. वैशेषिक दर्शन भाष्य 1.17 अ. 35 5. सांख्यतत्त्वकौमुदी 67 6. उमेश मिश्र - -'भारतीय दर्शन' पृ. 236 “कीरइ जीएण हेऊहिं जेण तु भण्णए कम्मं // " -कर्मग्रन्थ 1.1 8. तत्त्वार्थसूत्र 8.21 9. आचारांग 1.3.1 10. पंचाध्यायी 2.50 11. 'सव्वे सयकम्मकप्पिया' -सूत्रकृतांग 1.2.18 12. ब्रह्मवैवर्त पुराण (1) पृ. 266, श्लो. 33-39 13. गरुड़ पुराण (2) पृ. 407, श्लो. 71 14. “जं जारिसं पुव्वमकासि कम्म तमेवं आगच्छति संपराए।" -सूत्रकृतांग 1.5.2.23 15. उत्तराध्ययन 4.3 . 16. "ब्रह्मा येन कुलालवन्नियमितो ब्रह्माण्डमाण्डोदरे विष्णुयेन दशावतार गहने क्षिप्तो महासंकटे रुद्रो येन कपाल पाणिरपरो भिक्षाटनं कारित:। सूर्यो प्राम्यति नित्यमेव गगने तस्मै नमः कर्मणे / / " - गरुडपुराण 17. “को वा कस्मिन्समथों भवति विधिवशाद् प्रामयेत्कर्म रेखा" -वही प 1.383, श्लो. 14 18. "मा भुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटिशतैरपि अवश्यमेव भोक्तव्यं कृत कर्म शुभाशुभम्" - -ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खण्ड, अध्याय 65, श्लो. 47 19. (अ) जैन पंचम कर्मग्रंथ 15-17 (ब) सांख्यकारिका 44 (स) योग सूत्र 2.14 (द) न्याय मंजरी पृ. 472 (य) मत्स्य पुराण (1) पृ. 175, श्लो. 19 () ब्रह्मवैवर्त पुराण (1) पृ. 275, श्लो. 18 20. कर्मणा चिरं जीवो च क्षणायुश्च स्वकर्मणा कर्मणा कोटिकल्पायुः क्षीणायुश्च स्वकर्मणा -ब्रह्मवैवर्त पुराण (1) पृ. 266, श्लो. 39 111 / पुराणों में जैन धर्म
SR No.004426
Book TitlePuranome Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2000
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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