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________________ GA Letos betegetve ) में राज्य करते थे। उनके पुत्र को नाम था-श्रेयांसकुमार / एक टू 1) रात्री में श्रेयांसकुमार ने एक स्वप्न देखा। उसने देखा कि सुमेरू , पर्वत काला पड़ गया है और वह उस दुग्ध से सींच रहे हैं। उनके सींचने से सुमेरू पुनः स्वर्ण के समान उज्जवल हो उठा हो। दूसरे दिन श्रेयांसकुमार अपने महल के झरोखे में बैठे हुए.. 5) रात्री में देखे स्वप्न पर चिन्तन कर रहे थे। अकस्मात् उनकी दृष्टि ( 1) अपने महल की ओर मंथर गति से बढ़ते हुए अपने परदादा प्रभु ) ऋषभदेव पर पड़ी। वे अपलक दृष्टि से उन्हें निहारने लगे। उसी 8 समय उन्हें जाति स्मरण ज्ञान हो गया। पूर्वजन्म की घटनाएं चलचित्र की भांति उनके नेत्रों के समक्ष घूम गई। उन्होंने जान 0 लिया कि प्रभु ऋषभदेव एक वर्ष से निराहार हैं। शुद्ध कल्प्य आहार ( 2ii के अभाव में प्रभु की देह शिथिल हो गई है। श्रेयांस कुमार तत्काल पर उठे और प्रभु के समक्ष पहुंच गए। प्रभु को भक्तिपूर्वक प्रणाम कर र श्रेयांस कुमार ने प्रार्थना की-"प्रभो! पधारिए / प्रासुक इक्षुरस 5 ग्रहण कीजिए। यह आपके सर्वथा अनुकूल है।" / प्रभु ऋषभदेव ने ज्ञानमय नेत्रों से देखा। उन्हें निश्चय हो गया कि इक्षुरस शुद्ध और प्रासुक है। उन्होंने अपने दोनों हाथों का अंजलिपुट बनाकर इक्षुरस ग्रहण किया। 'अहो दानं' की देवध्वनियों से नभमण्डल गूंज उठा। देवों ने पंचद्रव्य प्रगट किए / प्रभु V ऋषभदेव प्रथम भिक्षुक हुए तथा श्रेयांसकुमार प्रथम दान-दाता Queensburg बने। ॐ वह वैशाख शुक्ला तृतीया का दिन था। उस दिन को अक्षय तृतीया पर्व का गौरव हासिल हुआ। तब से आज तक उस दिन को है। 6) समस्त जैन समाज में स्तंभ दिवस, पर्व दिवस के रूप में मनाया ( 1 जाता है। அழைன்னை
SR No.004425
Book TitleRushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji
PublisherMahavir Prakashan
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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