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________________ Jestetietetiges के वलज्ञान- प्रभु | ऋषभदेव एक हजार वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में रहे। उन्होंने विभिन्न प्रकार के तपों के माध्यम से अनन्त व अनादि से संचित कर्म-राशि को समूल निर्मूल कर दिया। मुरिमताल नगर के बाहर वट वृक्ष के नीचे, तेले की तपस्या की आराधना करते हुए फाल्गुन कृष्णा एकादशी के दिन प्रभात में प्रभु श्री ऋषभदेव र प्रभु ऋषभदेव के समवसरण में . भव्यातिभव्य दर्शन | ने शुक्ल ध्यान की पराकाष्ठाओं में विचरण करते हुए केवलज्ञान, केवलदर्शन की ज्योति अपनी आत्मा में प्रज्जवलित GossesGRLSG RATA PC M की। दिग्दिगन्त आलोकमय हो उठे। चौंसठ इन्द्रों, असंख्य देवताओं और अगणित मनुष्यों ने मिलकर प्रभु का कैवल्य महोत्सव मनाया। देवताओं ने समवसरण की रचना की। __माता मरुदेवी और महाराज भरत को प्रभु के कैवल्य का समाचार प्राप्त हुआ। माता मरुदेवी का वात्सल्यपूर्ण हृदय हर्षाप्लावित भी हो उठा / महाराज भरत ने भी अपने सभी कार्यक्रम स्थगित करके और प्रभु के कैवल्य महोत्सव में सम्मिलित लेने का संकल्प कर लिया। र प्रभु ऋषभदेव असंख्य देवी-देवताओं और मानवों के मध्यभाग 5 में उच्चासन पर विराजित थे। देवकृत समवसरण की रत्नमय, estagesesegossignment
SR No.004425
Book TitleRushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji
PublisherMahavir Prakashan
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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