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________________ festestuestestuestes 6 ने वर्षीदान दिया। एक वर्ष तक उन्होंने अरबों स्वर्णमुद्राएँ बांटीं। फिर चैत्र कृष्णा अष्टमी के दिन प्रभु ऋषभदेव ने पंचमुष्टी लुंचन करके दीक्षा धारण की। ऋषभदेव अपने युग के एकमात्र मान्य पुरुष थे। वे लोगों के हृदयों में उतर चुके थे। लोग उन्हें अपना संरक्षक और जनक मानते थे। इसलिए उनके अभिनिष्क्रमण के साथ ही चार हजार लोगों ने उनका अनुकरण करते हुए दीक्षा धारण की। प्रभु ऋषभदेव मौनावलम्बी बनकर विचरण करने लगे। कुछ दिनों तक उनके साथ दीक्षित हुए चार हजार मुनि उनका अनुगमन करते रहे। लेकिन साध्वाचार की मर्यादाओं से अनभिज्ञ होने के कारण श्रमण-मुनि क्षुधा-तृषा से व्यथित होने लगे। वे प्रभु से पूछते-"बाबा! हम क्या खाएं?" लेकिन प्रभु कोई उत्तर न देते। क्षुधा-तृषा से पीड़ित उन चार हजार मुनियों ने वन-मार्ग ग्रहण कर लिया। वे कन्द-मूल-फल का भोजन करते हुए अपने-अपने ढंग से स्वतंत्र साधना करने लगे। __महादान- धर्म और धर्म-नियमों से वह युग एकदम अपरिचित था। प्रभु ऋषभदेव भिक्षा के लिए द्वार-द्वार पर जाते, लेकिन लोग दान विधि से अनभिज्ञ थे। लोग सोचते बाबा को कुछ अमूल्य भेंट दे चाहिए। वे उन्हें सुन्दर वस्त्र, आभूषण तथा स्वर्णमुद्राएँ भेंट करते लेकिन भोजन देने की किसी को नहीं सूझती। प्रभु मौन भाव से उनकी भेंट अस्वीकार करके लौट जाते। यह क्रम एक वर्ष तक चलता रहा। निरन्तर एक वर्ष तक प्रभु निराहार-निर्जल रहे। 1) प्रभु ऋषभ देव के पौत्र तथा बाहुबलि के पुत्र सोमप्रभ हस्तिनापुर ( sitargesraegetargetelargesgendergensideegssiegesic
SR No.004425
Book TitleRushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji
PublisherMahavir Prakashan
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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