________________ estisesti seestseestesgesoges 5) सर्वश्रेष्ठ सुदीर्घ तपाराधना है। यह तप प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव ( 2) भगवान के जीवनकाल की एक महत्वपूर्ण घटना से सम्बन्धित है। पंचमहाव्रत रूप धर्म को अंगीकार करने के बाद प्रभु आदिनाथ चार सौ दिनों तक निर्जल निराहारी रहे। और ग्राम-ग्राम, नगर-नगर विचरण करते हुए हमारे आराध्य र देव घर-घर गोचरी पधारते थे, किन्तु निर्दोष आहार-पानी बहराने / A वाला कोई भी दाता उन्हें नहीं मिला। यह कर्मोदय जन्य परिणाम ही था कि उस काल के सरल ) स्वभावी लोग अपने हृदय सम्राट् को कृषकाय देखकर कंचन कामिनी जैसी अनेक भेंट सामग्रियाँ प्रभु चरणों में समर्पित करना चाहते हैं, किन्तु प्रभु को आहार पानी बहराने की ओर किसी का ध्यान ही नहीं 7 जाता। सभी इस बात से अनभिज्ञ थे और उसमें कारण बना , पूर्वोपार्जित अन्तराय कर्म / अन्यथा अनंत चौबीसियों में प्रत्येक चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर को इतने दीर्घकाल तक निराहारी रहना पड़ा हो, कर ऐसा जिक्र कहीं भी नहीं आता है। / सर्वत्र कर्मों की सत्ता विद्यमान है। चाहे कोई राजा हो या रंक, साधु हो या गृहस्थ / निम्न पद से उपर्युक्त कथन के मार्मिक C) भाव को समझा जा सकता है२) दुनिया के चरा चर जीवों पर, कर्मों ने जाल बिछाया है। पर क्या साधु-गृहस्थ, क्या बाल-वृद्ध बस कोई न बचने पाया है।। भी प्रभु सम्राट थे, स्वामी थे, उन्हें इतना कठोर तप करने की र आवश्यकता भी नहीं थी। उनके एक इशारे पर हजारों सेवक है। कार्यरत हो सकते थे। किन्तु जबसे प्रभु ने कर्मों को क्षय करने का दृढ़ संकल्प किया, तभी से सहज साधना में लीन हो गये। उनकी geogeogebogenoegegen