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________________ G eegeeageregendemericages 5) में बीज वपन करने वाले कृषक की भाँति उसका, एक बीज सैकड़ों फल प्रदान करता है। 'तपस्वी बाहर से कृषकाय लगता है, किन्तु / भीतर में उसका आत्मिक तेज बढ़ता है। आत्मिक शक्तियाँ जागृत ॐ होती हैं, जिससे अनेकानेक लब्धियाँ व सिद्धियाँ साधक के चरण चूमती हैं। . मैंने हिन्दी साहित्य का अध्ययन करते हुए ‘रामवृक्ष बेनीपुरी' का एक 'गेहूँ बनाम गुलाब' प्रतीकात्मक निबन्ध पढ़ा। गेहूँ और 3) गुलाब के माध्यम से लेखक ने बहुत ही सुन्दर विचार अभिव्यक्त श किये है। / गेहूँ आर्थिक प्रगति का प्रतीक है तो गुलाब सांस्कृतिक ॐ प्रगति का। गेहूँ शरीर का पोषण करता है तो गुलाब मन को स्वस्थता प्रदान करता है। गेहूँ हमारा शरीर है तो गुलाब हमारी 5) आत्मा। भारतीय संस्कृति में आत्म-तत्त्व को ही ज्यादा महत्व प्रदान किया गया है। जनम-जनम से पेट के कोठे को भरने में लगी हुई श्री स्वाभाविक वृत्ति सद्गुरू का उपदेशामृत पानकर पेट की चिन्ता छोड़कर आत्मोन्मुखी बनती है। जैसे शरीर के लिए गेहूँ जरूरी है, 2 इसी तरह आत्मा के लिए गुलाब के सदृश तप अत्यावश्यक है। साधक के लिये शास्त्र में एक शाश्वत संकेत प्राप्त होता है gesgesGeegeeeeeeGLAGeegsssssixeGersity _ संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरई' अर्थात् संयम र | और तप से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ विचरण करे। विभिन्न प्रकार की तपस्याओं की श्रृंखला में 'वर्षीतप’ एक மதை
SR No.004425
Book TitleRushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji
PublisherMahavir Prakashan
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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