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________________ Hostess gestes Osteoautoteutus सारी इच्छाएँ सहज योग में विलीन हो गईं। कर्मोदयजन्य प्राप्त (G परिस्थितियों के प्रति कोई क्षोभ नहीं मात्र ज्ञाता दृष्टा भाव में स्थित रहकर प्रवृत्तियों का परिष्कार करना ही उनका एकमात्र ध्येय हो / ॐगया। वहाँ तो सब कुछ स्वीकार है, इंकार कुछ नहीं / प्रतिक्रिया की 3 र भावना ही समाप्त हो चुकी थी। सहज साधना में लीन प्रभु समाधिस्थ ) हो गये थे। सारी भेद रेखाएँ समाप्त हो गईं। उन्हें कहाँ भान था कि 'मैं राजा हूँ' और अपने प्रजाजनों के M) घरों में भिक्षा हेतु परिभ्रमण कर रहा हूँ। वे तो प्रतिदिन शान्त व मौन ॐ भाव से गलियों में घूमते हुए कोई शाश्वत संकेत देते हुए पुनः जंगल ई में खो जाते थे। गुफाओं में ध्यानस्थ हो जाते थे। अन्तराय कर्म की इस विचित्रता का कवि ने गीत की इन पंक्तियों में बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया है: जरा कर्म देखकर करिये, इन कर्मों की बहुत बुरी मार है, नहीं बचा सकेगा परमात्मा, फिर औरों का क्या एतबार है || टेर / / बारह घड़ी तक बैलों को बांधा, छींका लगा दिया खाने को। बारह मास तक ऋषभ प्रभु को, आहार मिला नहीं दाने को। पर इस युग के जो प्रथम अवतार हैं, बिन भोगे न छूटे लार है।।1 || 6 कर्मों का खाता सभी को ब्याज सहित चुकाना पड़ता है और 3 कोई हो तो दया करे, पर कर्म सम्राट में कहाँ दया? वह तो जड़ है, 6) पत्थरहृदयी। 12 घड़ी की छोटी-सी त्रुटि का फल भुगतना पड़ा 12 मास तक / 1 2 महीने की इस कठोर साधना ने सभी के दिलों को ॐ झकझोर दिया। यह घटना आज भी उतनी ही तरोताजा है जितनी र तब थी और तब से अब तक वर्षीतप की महान परम्परा भी अक्षुण्ण है। GoriessesGHAGRALEGrouseservey
SR No.004425
Book TitleRushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji
PublisherMahavir Prakashan
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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